Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायाङ्गसूत्रे रहे) दृढरथो-दृढरथ८(दसरहे) दशरथः-दशरथ९ (सयरहे) शतरथा-दशवें शतरथा (जंबूद्दीवेणं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणी समाए सत्त कुलगराहोत्था) जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे भारते वर्षे अस्यामवसर्पिण्यां समायां सप्तकुलकरा आसन्-इस जंबूद्वीप नामके प्रथम द्वीप में भारतवर्ष में इस चालु अवसर्पिणी काल में सात कुलकर हुए है (तं जहा) तद्यथा-उनके नाम ये हैं-(पढमेस्थविमलवाहण) प्रथमोऽत्रविमलवाहन:-प्रथम विमलवाहन (चक्खुम) चक्षुष्मान्-द्वितीयचक्षुष्मान् (जसमं) यशोमान्-तृतीय यशोमान् (चउत्थमभिचंदे) चतुर्थोऽभिचन्द्र:-चतुर्थ अभिचंद्र (तत्तो य) ततश्च-इनके बाद (पसेणईए) प्रसेनजित्-पांचवे-प्रसेनजित् (मरुदेवे) मरुदेव:छठवें मरुदेव (चेव नामी य) चैव नाभिश्च-और सातवें नाभिराय । (एतेसि णं सत्तण्हं कुलगराणं) एतेषां खलु सप्तानां कुलकराणां-इन सात कुलकरों की (सत्त भारिया होत्था) सप्तभार्या आसन्-सात स्त्रीयां थीं। (तं जहा) तद्यथा-उनके नाम इस प्रकार से हैं-(चंद जसा) चन्द्रयसा:चंद्रयशा१, (चंदकंता) चन्द्रकान्ता-चन्द्रकान्त२ (सुरूवपडिरूवचक्खु कंताय) सुरूपा प्रतिरूपा चक्षुष्कान्ता च-सुरूपा३, प्रतिरूपा४ चक्षुष्कान्ता५ (सिरिकंता मरुदेवी) श्रीकान्ता मरुदेवी-श्रीकांताद और मरुदेवी७। (कुलगर
(७) महालीमसेन, (दढरहे) दहरथो-(८) ४८२थ, (दसरहे) दशरथः-४१२थ, (सयरहे) शतरथ:-मने (१०) शत२५. (जंबूद्दीवेणं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीसमाए सत्तकुलगराहोत्था) जम्बुद्वीपे खलु द्वीपे भारतेवर्षे अस्यामवसर्पिण्यां समायां सप्तकुलकरा आसन्-मादी५ नमना पman Suvi
आवेला लात मा आ या मसपि elsti सात ४३॥ यया छ. (तं जहा) तद्यथा-तमना नाम मा प्रमाणे छे. (पढमेत्थ विमलवाहण) प्रथमोऽत्र विमल. वाहनः-(१) विमलवाडन, (चक्खुम) चक्षुष्मान्-(२) यक्षुभान, (जसमं) यशोमान-(3) यशोमान, (चउत्थमभिचंदे) चतुर्थोऽभिचन्द्रः-(४) भलियन्द्र, (तत्तोय पसेणईए) ततश्च प्रसेनजित्-(५) प्रसेनलित, (मरुदेव) मरुदेवः(१) भ२४१ भने (चेवनाभीय) चैवनाभिश्च-(७) नालिराय. (एतेसिणं सत्तण्हं कुलगराणं) एतेषां खलु सप्तानां कुलकराणां-मा सात ४४२।नी (सत्तभारिया होत्था) सप्तभार्या आसन्-सात पत्नीको हती. (तं जहा) तद्यथा-तमना नाम मा प्रमाणे छे–(चंदजसा) (१) यन्द्रयशा, (२) (चंदकंता) यन्द्रsiral, (सुरुव पडिरूव चक्खुकंता य) (3) सु३५॥ (४) प्रति३५ा, (५) यक्षु०४ा-ता, (सिरिकता
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
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