Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायाङ्गसूत्रे
प्रथम ग्रैवेय कवच्छेषाष्टग्रैवेयकाणां पञ्चानुत्तरोपपातिक देवानामपि च तैजसशरीरा वगाहना विज्ञेया । ' एवं कम्मयसरीरं भाणियच्वं' एवं कर्मजशरीरं भणितव्यम्= तेजस शरीरवत् कार्मणशरीरमपि विज्ञेयम् ॥सू. १८९ ।।
प्राणिनामवगाहनामुक्तवाऽवधिं प्रतिपादयन्नाह —
मूलम् -- भेयंविसय संठाणे. अभित बाहिरेयेदेसोही । ओहिस्स बुड्डिहाणी, पडिवईचे व पडिवाई ॥सू. १९०॥
अपेक्षा जानना चाहिये। तेजस शरीर की तरह कार्मण शरीर की अवगाहना के विषय में भी यही पूर्वोक्त कथन लगा लेना चाहिये | सू० १८९॥ इस तरह जीवों की अवगाहना का कथन करके अब सूत्रकार अवधिज्ञान का कथन करते हैं
शब्दार्थ - (भेय - विसय - संठाणे) भेद - विषय - संस्थानम्-भेद अवधि ज्ञान का भेद, विषय - अवधिज्ञान का विषय, संस्थान - अवधि ज्ञान का संस्थान, ( भितर) आभ्यन्तर :- अवधिज्ञान से प्रकाशित क्षेत्र के अन्दर कौन जीव हैं?, (बाहिरे य) बाह्यश्च - अवधिज्ञान के बाहर कौन जीव है, (देसोही) देशावधि: - देशरूप अवधिज्ञान, (ओहिस्स बुडराणी) अवधेर्वद्धिहानी - अवधिज्ञान की वृद्धि और हानि, तथा ( पडिवाई चेव अपडिवाई) प्रतिपाती चैव अप्रतिपाति प्रतिपाती अवधिज्ञान और अप्रतिपाती अवधिज्ञान यह सब कहना चाहिये | |सू० १९० ॥
તેજસ શરીરની આયામની અપેક્ષાએ જધન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના સમજવી. તેજસ શરીરની જેમ કા`ણુ શરીરની અવગાડુના ખાખતમાં પણ પૂર્ણાંકત કથન સમજવુંસૂ.૧૮૯૫ આ પ્રમાણે પ્રાણીઓની અવગાહનાનું વર્ણન કરીને હવે સૂત્રકાર અધિ ज्ञान प्रथन पुरे छे-
शब्दार्थ - (भेय - विसयसंठाणे) भेद - विषय - संस्थानम् - अवधिज्ञानना लेह, व्यवधिज्ञानने। विषय, अने अवधिज्ञान संस्थान, (अभितर) अभ्यन्तरःअवधिज्ञानथी प्राशित क्षेत्रमां हुया या भवे। छे, (बाहिरेय) बाह्यश्च - अव विज्ञानना क्षेत्रनी महार या या वो छे, (देसोंही) देशावधिः- देश३य अवधिज्ञान,(ओहिस्स बुर्नैहाणी) अवधेर्वृद्धिहानी - अवधिज्ञाननी वृद्धि भने हानी, तथा पडिवाई चे अपडिवाई) प्रतिपाती चैव अप्रतिपाति प्रतिपाती अवधिज्ञान અને અપ્રતિપાતી વિશ્વજ્ઞાન તે બધી ખાખતા કહેવાવી જોઈએ ાસ. ૧૯૦ની
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર