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________________ १००६ समवायाङ्गसूत्रे प्रथम ग्रैवेय कवच्छेषाष्टग्रैवेयकाणां पञ्चानुत्तरोपपातिक देवानामपि च तैजसशरीरा वगाहना विज्ञेया । ' एवं कम्मयसरीरं भाणियच्वं' एवं कर्मजशरीरं भणितव्यम्= तेजस शरीरवत् कार्मणशरीरमपि विज्ञेयम् ॥सू. १८९ ।। प्राणिनामवगाहनामुक्तवाऽवधिं प्रतिपादयन्नाह — मूलम् -- भेयंविसय संठाणे. अभित बाहिरेयेदेसोही । ओहिस्स बुड्डिहाणी, पडिवईचे व पडिवाई ॥सू. १९०॥ अपेक्षा जानना चाहिये। तेजस शरीर की तरह कार्मण शरीर की अवगाहना के विषय में भी यही पूर्वोक्त कथन लगा लेना चाहिये | सू० १८९॥ इस तरह जीवों की अवगाहना का कथन करके अब सूत्रकार अवधिज्ञान का कथन करते हैं शब्दार्थ - (भेय - विसय - संठाणे) भेद - विषय - संस्थानम्-भेद अवधि ज्ञान का भेद, विषय - अवधिज्ञान का विषय, संस्थान - अवधि ज्ञान का संस्थान, ( भितर) आभ्यन्तर :- अवधिज्ञान से प्रकाशित क्षेत्र के अन्दर कौन जीव हैं?, (बाहिरे य) बाह्यश्च - अवधिज्ञान के बाहर कौन जीव है, (देसोही) देशावधि: - देशरूप अवधिज्ञान, (ओहिस्स बुडराणी) अवधेर्वद्धिहानी - अवधिज्ञान की वृद्धि और हानि, तथा ( पडिवाई चेव अपडिवाई) प्रतिपाती चैव अप्रतिपाति प्रतिपाती अवधिज्ञान और अप्रतिपाती अवधिज्ञान यह सब कहना चाहिये | |सू० १९० ॥ તેજસ શરીરની આયામની અપેક્ષાએ જધન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના સમજવી. તેજસ શરીરની જેમ કા`ણુ શરીરની અવગાડુના ખાખતમાં પણ પૂર્ણાંકત કથન સમજવુંસૂ.૧૮૯૫ આ પ્રમાણે પ્રાણીઓની અવગાહનાનું વર્ણન કરીને હવે સૂત્રકાર અધિ ज्ञान प्रथन पुरे छे- शब्दार्थ - (भेय - विसयसंठाणे) भेद - विषय - संस्थानम् - अवधिज्ञानना लेह, व्यवधिज्ञानने। विषय, अने अवधिज्ञान संस्थान, (अभितर) अभ्यन्तरःअवधिज्ञानथी प्राशित क्षेत्रमां हुया या भवे। छे, (बाहिरेय) बाह्यश्च - अव विज्ञानना क्षेत्रनी महार या या वो छे, (देसोंही) देशावधिः- देश३य अवधिज्ञान,(ओहिस्स बुर्नैहाणी) अवधेर्वृद्धिहानी - अवधिज्ञाननी वृद्धि भने हानी, तथा पडिवाई चे अपडिवाई) प्रतिपाती चैव अप्रतिपाति प्रतिपाती अवधिज्ञान અને અપ્રતિપાતી વિશ્વજ્ઞાન તે બધી ખાખતા કહેવાવી જોઈએ ાસ. ૧૯૦ની શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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