Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायाङ्गसूत्रे
दैर्येण 'जहन्नेणं' जघन्यतः 'अंगुलस्स असंखेज्जइभागे' अगुलस्यासंख्येयभागः= अर्जुलासंख्येयभागप्रमाणा । 'उकोसेणं' उत्कर्षतः 'लोगताओ लोगते' लोका. न्ताल्लोकान्तः ऊर्ध्वलोकान्तादधोलोकान्तः, अधोलोकान्तात् ऊर्ध्वलोकान्तो यावत् तावत्प्रमाणा शरीरावगाहना । 'एगिदियस्स णं भंते !' एकेन्द्रियस्य ख लु भदन्त ! 'मारणंतियसमुग्धा एण समोह यस्स तेयासरीरस्स' मारणान्तिकसमुद्धातेन समवहतस्य तैजसशरीरस्य 'के महालिया' किं महती 'सरीरोगाहणा' शरीरा. वगाहना ‘पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता ? 'गोयमा ! एवं चेव' हे गौतम ! एवमेव. अर्यात विष्कम्भवाहल्येन शरीरप्रमाणमात्रा, आयामेन जघन्यतोऽजुलासंख्येयभागप्रमाणा। उत्कर्षतो लोकान्ताल्लोकान्तः अधोलोकादारभ्य ऊर्ध्वलोकान्तः ऊर्ध्वलोकान्तादारभ्य अधोलाकान्तो यावत्तावत्प्रमाणा । इयं सूक्ष्मस्य बादरस्य चैकेन्द्रियस्य भवति, नान्यस्य, असंभवात्, सूक्ष्मबादराश्चै केन्द्रियाः समस्तेऽपि लोके वर्तन्ते नेतरे । में एक२ हजार योजन की हैं। इन कलशों के तीन भाग हैं। एक भाग नीचेका है, दूसराभाग मध्य का है और तीसरा भाग ऊपर का है। नीचे का जो भाग है वह जल से परिपूर्ण है। मध्य का भाग वायु से और ऊपर का भाग वायु और पानी इन दोनों के आने जाने का स्थान है। जिस समय कोई पातालकलश समीपवर्ती नारक कि जो सीमन्तक आदि नरकावास में स्थित है अपनी आयु के क्षयसे जब नरकावास से निकल कर पातालकलश के बीच में दूसरे अथवा तीसरे त्रिभाग में मत्स्य की पर्याय से उत्पन्न होता है तब वह एक हजार योजन प्रमाण मोटाई वाली उस पातालकलश की ठिकरिका-को भेद करके वहां उत्पन्न होता है। उस समय उस नारक जीव के मारणांतिक समुद्धात के वश से बहिनिर्गत तैजसशरीर की अवगाहना जघन्य से इतनी बड़ी होती है। યોજનની છે તે કલશોના ત્રણ ભાગ છે-નીચેનો ભાગ, મધ્યનો ભાગ અને ઉપર ભાગ. નીચેનો જે ભાગ છે તે પાણીથી ભરેલો છે, મધ્ય ભાગ વાયુથી ભરેલો છે અને ઉપરને ભાગ વાયુ અને પાણીને આવવાનું તથા જવાનું સ્થાન છે. સીમન્ડક આદિ નારકાવાસોમાં રહેલ પાતાલકલશ સમીપવતી નારકી જીવ જ્યારે તેના આયુષ્યનો ક્ષય થાય છે ત્યારે નરકાવાસમાંથી નીકળીને પાતાળ કલશની વચ્ચે બીજા અથવા ત્રીજા વિભાગમાં મલ્યની પર્યાયે ઉત્પન્ન થાય છે ત્યારે તેઓ એક હજાર યોજન પ્રમાણ જાડાઈવાળી તે પાતાળકલશેની ઠીકરીઓને ભેદીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે તે વખતે તે નારકજીવના મારણાંતિક સમુદ્રઘાતના કારણે બહિनित शरीरनी अवमाउना धन्यनी अपेक्षा मेटक्षी मोटी थाय छ. 'उकोसेणं जाव अहे सत्तमापुढवी' Greनी अपेक्षा ते ना२४ीन तेरस शरीरनी ११॥
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર