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समवायाङ्गसत्रे
पण्णत्ताई) अवशेषाणि परिकर्माणि पुष्टादिकानि एकादशविधानि-प्रज्ञप्तानिबाकी रहे हुवे पृष्ट श्रेणिकापरिकर्म१ अवगाहनाश्रेणिकापरिकर्मर, उपसंपद्यश्रेणिकापरिकर्म३, विपजहच्छ्रेणिकापरिकर्म४, च्युता-च्युतश्रेणिकपरिकर्म५ इन पांचों के तथा मातृकापद से लगाकर प्रतिग्रह तक प्रत्येक ग्यारह ग्यारह भेदवाले हैं। (इच्चेयाई सत्तपरिकम्माइं) इत्येतानि सप्तप. रिकर्माणि-सिद्धश्रेणिका से लेकर च्युताच्युततक ये सात परिकर्म हैं। इनमें (छ ससामइयाइं) षट् स्वसामयिकानि-छ परिकम जैन-सिद्धान्त सम्मत हैं, (सत्त आजीवियाई) सप्त आजीविकानि-सात परिकर्म आजीविक सम्मत हैं, (छ चउक्क नइयई) षट चतुष्कनयिकानि-छपरिकर्म चार नयवाले हैं, जो कि जिनसिद्धान्त सम्मत हैं, (सत्त तेरासियाई) सप्त त्रैराशिकानि-सात परिकर्म-त्रैराशिक सम्मत हैं। (एवामेव) एवमेव-इस प्रकार (सपुव्वावरेणं सत्त परिकम्माइं तेईसी भवंतीतिमक्खाइं) पूर्वापर के संकलन से ये सात परिकम तिरासी हो जाते हैं। (से तं परिकम्माई) तान्येतानि परिकर्माणि-इस प्रकार परिकर्म का निरूपण पूर्ण हुआ।
अब दृष्टिवाद का जो दूसरा भेद है उसके विषय में शिष्य पूछता है कि हे भदंत ! से (से किं तं सुत्ताइं) अथ कानि तानि मूत्राणि-सूत्र परिकर्माणि पृष्टादिकानि एकादशविधानि प्रज्ञप्तानि-माना (१) पृष्टश्रेणि ५६२४भ', (२) अाणुि परिभ, (3) अपसघश्रेणि परिभ (४) (१५. જહરચ્છણિકા પરિકમ, અને (૫) યુતાશ્રુતાશ્રેણિકા પરિકર્મ, એ પાંચેના “માતૃ४५६'थी बने 'प्रतिय' सुधीना मनियार सगिया२ ले छे. (इच्चेयाइंसत्तपरिकम्माइं) इत्येतानि सप्तपरिकर्माणि-मा प्रमाणे सिद्ध श्रेणुिाथी सन २युताश्युत सुधाता सात प२ि४ छे. तेमांना (छ ससामइयाइ) षट्स्वसामयिकानि७ परिभ सिद्धातने मान्य छ, (सत्त आजीवियाई) सप्त आजीविकानिसात ५२४° मालविछाने भान्य छ, (छ चउक्कनइयाई) षट्चतुष्कनयिकानिछ परिभ या२ नया छ, सिद्धांतने मान्य छ, (सत्त तेरासियाई) सप्त त्रैराशिकानि-सात प२ि४ राशिने मान्य छे. (एवामेव) एवमेवमा ४ारे (सपुव्वावरेणं सत्तपरिकम्माइं तेईसी भवंतीतिमक्खाई) पूर्वापरनी सनाथी ते सात ५२४ राशि 2 Mय छ. (से तं परिकम्माई) तान्येतानि परिकर्माणि-मा शत प२ि४भनु १९° ५३ थयु.
वे दृष्टिवाना में विशिष्य पूछे छे-डे महन्त ! (से कि तं सुत्ताई) अथ कानि तानि सूत्राणि-सूत्र नामना मी नेहनु २१३५ छ ? उत्तर
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર