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समवायाङ्गसूत्रे
का नाम प्राभृत है। (संखेजापाहुडपाहुडा) संख्येयानि प्राभृतप्रा. भृतानि-संख्यात प्रभृतपाभृत हैं। ग्रन्थांश विशेष के जो अंश विशेष हैं वे प्राभृत प्राभृत हैं। (संजाओ पाहुडियाओ) संख्येयाः प्राभृतिका-संख्यात प्राभृतिकाएँ हैं। (संखेजाओ पाहुडपाहुडियाओ) संख्येयाः प्राभृतपाभृतिका:
ख्यात प्रामृतपाभृतिकाएँ हैं। (संखेजाइ पयसयसहम्सां पयग्गेणं पण्ण त्ताई) संख्येयानि पदशतसहस्राणि पदाग्रेण प्रज्ञप्तानि-पद परिमाण की अपेक्षा इसमें संख्यात हजार पद हैं। (संखेज्जा अक्खरा) संख्येयान्यक्ष राणि-संख्यात अक्षर हैं, (अणंता गमा) अनन्ताः गमा:-अनंत गम हैं,(अणंता पजवा) अनन्ताः पर्यवाः-अनंत पर्यायें हैं। (परित्ता तसा) परीताः प्रसाः असंख्यात त्रस हैं, (अणंत्ता थावरा) अनन्ताः स्थावरा:- अनंत स्थावर है। (सासया कडानिबद्धाणिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति) शाश्वताः कृताः निबद्धाः निकाचिता जिनमज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते-ये ऊपर में निर्दिष्ट किये गये समस्त जिनमज्ञप्त भाव द्रव्यार्थता की अपेक्षा से नित्य हैं, पर्यायार्थता की अपेक्षा से अनित्य हैं। सूत्र में ही ग्रथित होने के कारण निबद्ध हैं। नियुक्ति, संग्रहणी,हेतु-और उदाहरण इनके द्वारा इनकी प्रतिष्ठा की गई है अतः निकाचित हैं। इन समस्त जिनप्रज्ञप्त भावों का इस प्राभृतानि-सभ्यात प्रामृतालत छ, (अन्या विशेषाना रे मशविशेष डाय छ तमने प्रातलत ४ छ) (संखेजाओ पाहडीयाओ) संख्येयाःप्राभृतिका:सभ्यात प्रातिstो छ, (संखेजाओ पाहुडपाहुडियाओ) संख्येया:प्राभृतप्राभृतिका:-मने यात प्रामृतातिय छे. (संखेजाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ताई) संख्येयानि पदशतसहस्त्राणि पदाग्रेण प्रज्ञप्तानि-तमा सज्यात २ ५६ छे. (संखेज्जा अक्खरा) संख्येयान्यक्षराणि-सच्यात मक्ष छ, (अणंता गमा) सनत म छ, (अणंता पज्जवा) अनत पर्याय छ, (परिता तसा) मसज्यात रस छे, (अणंता थावरा) मने मनत था१२ छे. (सासया कडा निबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति)शाश्वताः कृताः निबद्धाः निकाचिता जिनप्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते-५२ शाखा સમસ્ત જિનપ્રજ્ઞપ્ત ભાવ દ્રવ્યાર્થતાની અપેક્ષાએ નિત્ય છે, પર્યાયાર્થતાની અપેક્ષાએ અનિત્ય છે, સૂત્રમાં જ ગ્રથિત હોવાને કારણ નિબદ્ધ છે, નિર્યુક્તિ, સંગ્રહણી, હેતુ અને ઉદાહરણ દ્વારા તેમની પ્રતિષ્ઠા કરવામાં આવી હોવાથી તે નિકાચિત છે. આ બધા જિનપ્રજ્ઞ ભાવનું આ અંગમાં સામાન્ય અને વિશેષરૂપે કથન
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર