Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायाङ्गसूत्रे प्रथमे अहंदादयः। द्वितीयाः क्षेत्र १ जातिर कुल३धर्म४ शिल्प५ भाषा ज्ञान दर्शन८ चारित्र९भेदान्नवविधाः । देवाश्चतुर्विधाः-भवनवास्यादिभेदात् । तत्र-भवनपतयोऽसुरनागादिभेदादशधा । व्यन्तराः पिचाशादिभेदादष्टधा । ज्योतिष्काश्चन्द्रादिभेदात्प श्वधा । कल्पोपगकल्पातीतभेदावैमानिका द्विधा । तत्र कल्पोपगाः सौधर्गादिभेदाद् द्वादशधा । कल्पातीता द्विधा-अवेयका अनुत्तरोपपातिकाश्च । ग्रैवेयका नवधा, एतत्सर्व 'जाव' यावत् शब्दाद् विज्ञेयम् । 'से किं तं अगुत्तरोववाइया' अथ के ते अनुत्तरोपपातिका ? ' अणुतरोवधाइया' अनुतरोपपातिकाः 'पवविहा पन्नत्ता' पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा-'विजयवेजयंतजयंतअपराजिय भेद से दो प्रकार के होते हैं। ऋद्धिप्राप्त और अवृद्धिप्राप्त के भेद से आर्य मनुष्य भी दो तरह के हैं। अहंत आदि महान् पुरुष ऋद्धिप्राप्त आर्यों में हैं। अनृद्धि प्राप्त आर्य क्षेत्र से १,जाति से २, कुल से३, धर्म से४, शिल्प से५ भाषा से५, ज्ञान से७, दर्शन से८ और चारित्र से९ नौ प्रकार के हैं। भवनवासी आदि के भेद से देव चार प्रकार के होते हैं। इन में जो भवनवासी देव है असुरकुमार आदि के भेद से दस प्रकार के कहे गये है। व्यन्तरदेव पिशाच आदि के भेद से ८ प्रकार के,ज्योतिष्क देव चन्द्रमा आदि के भेद से पांच प्रकार के और कल्पोपपन्न एवं कल्पातीत के भेद से वैमानिक देव दो प्रकार के हैं। इनमें जो कल्पोपपन्न देव हैं वे सौधर्म आदि के भेद से बारह प्रकार के हैं। अवेयक और अनुत्तरोपपातिक के भेद से कल्पातीत दो प्रकार के हैं। ग्रैवेयक नौ प्रकार के होते हैं। यह सब पूर्वोक्त पाठ यहां "यावत्" इस शब्द से ग्रहण किया गया है। अनुतरोपपातिक का क्या स्वरूप है ? उत्तर-अनुत्त रापपातिक पांच प्रकार के कहे गये हैं-वे इस प्रकार से हैं-विजय, वैजભેદ છે. આર્યમનુષ્યના બે ભેદ છે-ત્રદ્ધિ પ્રાપ્ત અને અનુદ્ધિ પ્રાપ્ત અહે ત આદિ મહાપુરુષને ત્રાદ્ધિ પ્રાપ્ત ગણી શકાય. અનુદ્ધિપ્રાપ્ત આર્યના ક્ષેત્ર, જાતિ કુળ, ધર્મ, શિ૯૫, જ્ઞાન, દર્શન અને ચારિત્ર પ્રમાણે નવ પ્રકાર પડે છે. દેના ભવનવાસી આદિ ચાર પ્રકાર હોય છે. ભવનવાસી દેવના અસુરકુમાર આદિ દસ ભેદ પડે છે. વ્યન્તર દેના પિશાચ આદિ આઠ ભેદ છે, જ્યોતિષ્ક દેના ચન્દ્રમા આદિ પાંચ પ્રકાર છે. અને વૈમાનિક દેના બે પ્રકારો છે (૧)ક૯પપપન્ન અને (૨)કલ્પાતીત તેમાંનાં જે દેવો છે તેમના સૌધર્મ આદિ બાર પ્રકાર છે. કપાતીત દેના બે પ્રકાર છે-વે. યક અને અનુત્તરપપાતિક પ્રવેયકના નવ પ્રકાર છે. પૂર્વોક્ત આ બધે પાઠ मही 'यावत्' श०४थी &ए। ये छे. अनुत्त५पातिनु २१३५ ३ छ ? उत्तर--मनुत्तपिपातिना पाय २ छ-विय, वैयत, यत,
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર