Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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से निर्मित होने के कारण चिकने सूत्र से निर्मित सुकोमल वस्त्र के समान कोमल. (लण्हा-लक्षणानि ) घोंटे गये वस्त्र जैसे चिकने होते हैं वैसे ही ये भवन चिकने हैं (घा - घृष्टानि ) पाषाण की पुतलिका जिस प्रकार खुरशाण) से घिसकर एकसी कर दी जाती है उसी प्रकार इनकी बनावट भी एकसी है अर्थात् जहां पर जैसी रचना होना चाहिये वैसी इनकी प्रमाणोपेत रचना है । कहीं पर भी दरदरापन इनमें नहीं है। ( मट्ठा - मृष्टानि ) सुकुमार शाण से जिस प्रकार पाषाण की पुतली साफकर शुद्ध कर दी जाती है उसी प्रकार से ये भी साफ हैं (निरया - निररजांसि ) इनमें कहीं पर भी धूलि का नाम नहीं है। (णिम्मला - निर्मलानि) निर्मल हैं (वितिमिरा - वितिमि राणि अंधकार रहित हैं। (विसुद्धा - विशुद्धानि) विशुद्ध - कलंक रहित हैं। (सप्पभा - सप्रभाणि) प्रकाशसंपन्न हैं । (समरीया-समरीचीनि) इनमें से प्रकाश की किरणें बाहर नोकलती रहती हैं। (सउज्जोआ - सोद्योतानि) ऊद्योत सहित हैं। (पासाईया - प्रासादीयानि ) मन को प्रसन्न करने वाले है, (दरिसणिज्जादर्शनीयानि) देखने वाले मनुष्यों की आंखे इन्हें देखते २ थकती नहीं हैं इसलिये ये दर्शनीय हैं। (अभीरुवा अभिरूपाणि) अभिरूप है - क्यों कि जब भी इन्हें देखा जाता है तय ही इनकी शोभा अपूर्व दीखलाई देती है। (पडि ભવને સુંવાળા સૂતરમાંથી વળેલા સુકામળ વસ્ત્ર જેવા કેમળ હોય છે (હજ્જા– लक्षणानि ) सेवा वस्त्रो भेटला सुवाणां होय छे भेटला सुरवाजां या लवना होय छे (घट्टा घृष्टानि) नेवी राते पथ्थरनी पुतणीने भरसाए (सरा) पर घसीने खे સરખી બનાવેલી હાય છે. એવી જ રીતે તે ભવના પણ પ્રમાણેાપેત રચનાવાળાં છે એટલે કે જ્યાં રચના હોવી જોઈએ તેવી પ્રમાણસરની રચનાવાળાં છે તેમાં કઈ चागु कग्यायो अडमन्यडाया नथी. ( मट्ठा - मृष्ठानि) केवी रीते नालू પાષાણની પુતળીને સાફ કરવામાં આવે છે એજ રીતે એ ભયના પણ (निरया - निररजांसि ) तेमां । या भय्या धूजनु तो नामनिशान याए, होतु dal. (forzası-fadoifa) à qqài lazım is, (fafafacı-fafafızıfor) अधार रहित होय छे, (विसुद्धा - विशुद्धानि) विशुद्ध-मुस' रहित होय छे, (सप्पभा - सप्रभाणि अाशयुक्त हेय छे, (समरीया - समरीचीनि) ते लवने। भांथी प्राशनां डिरो। महार अतां होय छे, (सउज्जोआ - सोद्योतानि) प्राशित हाय है, (पासाईया - प्रसादोयानि) भन्ने प्रसन्न अरना है, (दरिसणिज्जा) तेने नारनी मांग थाडती नथी, तेथी हर्शनीय छे, (अभिरुवा - अभिरूपाणि) मलि३५ छे-न्यारे बुवा त्यारे तेमनी शोला अपूर्व लागे छे, (पडिरूबा - पति
or
सराय वडे
સાફ છે.
समवायाङ्गसूत्र
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
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