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समवायाङ्गसूत्रे मयकाण्ड है (जोयणसहस्स बाहल्लस्स-योजनसहस्रबाहल्यस्य)एक हजार योजन की मोटाई है (उवरि एगं जोयणसयं ओगाहेत्ता-उपरि एकं योजनशतं अवगाह्य) ऊपर का एक सौ योजन छोडकर (हेढा चेगं जोयणसयं वज्जेत्ताअधस्तादेकं योजनशतं वर्जयित्वा-नीचे का एक योजन छोडकर(मज्झे-मध्ये) बीच का जो(अट्ठसु जोयणसएसु-अष्टसु योजनशतेषु) आठ सौ योजन का क्षेत्र बचता है (एत्थ ण-अत्र खलु) उसमे (वाणमंतराणं देवाण-व्यन्तराणां देवानां) व्यन्तर देवों के नगररूप आवास हैं । (भोमेज्जा-भौमेयानि ये आवास प्रथिवि कायिके बने हए है (तिरियमसंखेजा-तियग असंख्येयानि) तिरछे लोकमें असंख्यात् योजनतक हैं (नगरावाससयसहस्सा पन्नत्ता-नगरावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तागि) इनकी संख्या लाखों कही गयी हैं।(ते णं भोमेजानगरा-तानि खलु भोमेयानि नगराणि)ये भीमेय व्यन्तरावास(बाहिं वट्टाबहिं वर्तुलानि) बाहर में गोल हैं। (अंतो चउरंसा-अन्तः (चतुरस्रा) भीतर में चतुष्कोण हैं (एवं जहा भवनवासीणं तहेव णेयव्वा-एव यथा भवन वासिनां तथैव ज्ञातव्याः-इनका वर्णन भवनवासियों के आवास के जैसा कहा गया जानना चाहिये। (णवरं) परन्तु उनको अपेक्षा इनमें इतनी विशेषता है-(पडाग मालाउला-पताका मालाकुलानि) ये व्यन्तरों के (जोयणसहस्स बाहल्लस्स-योजनसहस्र बाहल्यस्य) तेनी Gया m२ योनी छे. (उवरि एगं जोयणसयं ओगाहेत्ता-उपरि एकं योजनशतं अवगाद्य) तेनी 6परनो मे से योन प्रमाण मा छोडीने सने (हेद्राचेग जोयणसयं वजेता-अधस्तादेकं योजनशतं वर्जयित्वा) नायने। मे४ योजन प्रभाएY HIn ने (मज्झे-मध्ये) १२येनु ने (असु जोयणसएसु-अष्टसु योजनशतेषु) 16 से योन प्रमाणु क्षेत्र २९ छे (एत्थणं-अत्र खलु) तेमा (वाणमंतराणं देवाण-व्यन्तराणां देवानां) व्य-त२ हवाना न॥२३५ मापासे छ (भोमेजा-भौमेयानि) ते मापासे लूमिगत छे. (तित्यिमसंखेजा-तिर्यग् असख्येयानि) ते मापासे ति२७ मा मसण्यात यौन सुधा . (नगरा वाससयसहस्सा पन्नत्ता--नगरावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि) तेभनी सध्या maiनी छे. (ते णं भोमेजानगरा-तानि खलु भोमेयानि नगराणि) ते भूमिगत यन्तरापासे (बाहिं वट्टा-बहिं वर्तुलानि) १२थी २ छ (अंतो चउरंसा-अन्तः चतुरस्राः) २थी यतुष्ठीए छ. (एवं जहो भवनवासीणं तहेवणेयवा-एवं यथा भवनवासिनां तथैव ज्ञातव्याः) ते सापासानु वर्णन ५५ लवनवासीयाना मापासे ४ छे. (वरं) ५५५ तेमना ४२di व्यन्त२ देवाना मापासेमा माटही विशिष्टता य छ- (पडागमालाउला-पताकामाला
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર