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भावबोधिनी टीका. द्वादशाविराधनाऽऽराधनाजनितफलनिरूपणम् ८७९ (भवइ य) अस्ति च-वर्तमान में भी है (भविस्सइ य) भविष्यति च- भविष्य में भी रहेगा। इसलिये यह गणिपिटक (अयले) अचल:-कालत्रय में भी इसका सद्भाव रहता है (धुवे) ध्रुवः-मेरुपर्वत आदि की तरह यह ध्रुव है (णिईए) नियतः-जीवंद्रव्य की तरह निश्चित है (सासए) शाश्वतःसमय आवलिका आदि में कालवचन की तरह यह शाश्वत है (अक्खए) अक्षयः-गंगा सिन्धु नदी के प्रवाह में पद्महूद की तरह यह बाचना आदि देने पर भी क्षयरहित है। (अव्वए) अव्ययः-मानुषोत्तर पर्वत से बहिर्वर्ती समुद्र की तरह यह अव्यय है। (अवट्टिए) अवस्थित:-जिस प्रकार अपने प्रमाण में जंबूद्वीप आदि अवस्थित है उसी प्रकार यह भी अपनी मर्यादा में अवस्थित है। (णिच्चे) नित्यः-आकाश की तरह नित्य है। (से जहाणामए) तद् यथानामकम्-जिस प्रकार (पंच अस्थिकाया) पञ्चास्तिकाया:-धर्मास्तिकायादिक पांच (ण कयाषि ण आसी) न कदापि नासीत-कभी नहीं थे यह बात नहीं है किन्तु हमेशा थे (ण कयाइ णस्थि) न कदापि न सन्तिकभी नहीं है यह बात नहीं है अर्थात् नित्य हैं (ण कयाइ ण भविस्संति) न कदापि न भविष्यन्ति-भविष्यत काल में नहीं होंगे यह भी मान्य नहीं हो सकता है। अर्थात् होंगे हो। (भुवि च) अभूवन्--पांचों ही अन्तिकाय पतमानमा ५० छ, भने (भविस्सइ य) भविष्यति च-लविष्याणमा ५५ २२शे, तेथी 24 पि८४ (अयले) अचल:-मय छ-
त्र णमा तेनु मस्तित्व २२वानु छ, (धुवे) ध्रुवः-२ प त माहिनी मते ध्रुव छ. (णिईए) नियतः
पद्र०यनी म त निश्चित छे, (सासए) शाश्वतः-समय मावलि माहिमा जयननी म ते शाश्वत छे, (अक्खए) अक्षय:-10 सिधु नदीना प्रवाहमा पाणी वा छतां पाडू म मक्षय २४ छ तम ते ५ अक्षय छे. (अन्वए) अव्यया-भानुषोत्तर ५ तनी महारना समुद्रनी भ ते सव्यय छे. (अवद्विए) अवस्थितः-२म पातानी भर्याहामा ५ मा Aalia छ तेम ते ५ पोताना भाडामा अपस्थित रहेस छ. (णिच्चे) नित्यः- शनी भनित्य छे. (से जहाणामए) तद् यथा नामकन्- (पंच अत्थिकाया) पश्चास्तिकायाःधर्मास्तिय २६ पांय मस्ताये। (ण कयावि ण आसी) न कदापि नासीत्४६] - Sai मेवी पात नथी, ५ मेश तi ar (ण कयाइ जत्थि) न कदापि न सन्ति-तमनु मस्तित्व नथी सेवी पात ५५ नथी थेटले ते नित्य छ, (ण कयाइ ण भविस्संति) न कदापि न भविष्यन्ति-भविष्यमा તે નહીં હોય એ વાત પણ માની શકાય તેમ નથી, એટલે કે ભવિષ્યમાં પણ शे 7. (भूविं च, भवंति य, भविस्संति य) अभूवन् , भवन्तिच, भविष्यन्ति
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર