________________
८९४
समवायाङ्गसूत्रे सप्ततियोजनशतसहस्रं) एक लाख अठोत्तर हजार योजन प्रमाणस्थान है (एत्थण-अत्र खल) इस (रयणप्यभाए पुढवीए-रत्नप्रभाया पृथिव्याः)रत्नप्रभा पृथिवी में (णेरइयाणं तीसं णिरयावाससयसहस्सा-नैरयिकाणां त्रिंशत् नर कावासशतसहस्राणि) तीसलाख प्रमाण नरकाबास हैं (भवंतीति मक्खायाभवन्तीत्याख्यातानि) ऐसा जिनेन्द्र देव ने कहा है। (ते णं निरयावासाअंतोवद्या-ते खलु नरकावासा अन्तर्वृत्ता) ये नरकावास भीतर गोल हैं। (बाहिं चउरंसा-बहिश्चतुरस्रा) बाहर में चार कोने वाले हैं। (जाव-यावत्) यावत् शब्द से इनका तलभाग वज्र के छुरे जैसा है सदा इन में अंधकार के जैसा तम भरा रहता है, ग्रह, चंद्र, सूर्य, नक्षत्र इनकी प्रभा से रहित है। (असुभा णिरया-अशुभाः नरकाः) नरक के जीव अशुभ हैं (णिरएसु असुभाओ-वेयणाओ-नरकेषु अशुभाः वेदनाः) नरक में अशुभ वेदना होती है (एवंसत्त वि भाणियव्वो-एवं सप्ताऽपि भणितव्यं) इसी तरह से सातों-रत्नप्रभापृथिवी से लेकर तमस्तमः प्रभा पृथिवी तक जानना चाहिये। (ज-यत्) बाहल्य प्रमाण (जास्तु-यस्या) जिस नरक में (जुज्जइ-युज्यते) जो घटित हो उस तरह से जानना चाहिये। सयसहस्सं-अष्टसप्ततियोजनशतसह ) मे atm मयाते२ ६०१२ यान प्रभा लाटी (एत्थणं-अत्र खलु) मा (रयणप्पभाए पुढवीए-रत्नप्रभायाः पृथिव्याः) २त्नप्रभा पृथ्वीमा (णेरइयाणं तीसं निरयावाससयसहस्सानैरयिकाणां त्रिंशत् नरकावास शतसहस्राणि)वीस atm न२७पास छ (भवंतीति मक्खाया भवन्तीत्याख्यातानि) सेभ लिनेन्द्रहे मांज्यु छ. (तेणं निरयावासा अंतोवट्ठा-ते खलु नरकावासा अन्तवृत्ता) ते न२४पास २५४२थी गानां छ. (बाहि चउरंसा-बहिश्चतुरस्रा) महारथी यतु। माना छ. (जाव-यावत् ) તેના તળિયાનો ભાગ વજાની છરી જે છે તેમા હમેશ અંધકાર જ ભરેલો २४ छ, ते अही, यद्र, सूर्य भने नक्षत्राना प्रशथी २हित छ (अमुभा णिरयाअशुभा: नरकाः) न२४ना लो अशुल हाय छ. (णिरएसु असुभाओ वेय. णाओ-नर केषु अशुभाः वेदनाः) न२४मा अशुल वेदना मनुली ५ छे. (एवं सत्त वि भाणि यवो-एवं सप्ताऽपि भणितव्यं)-२नाला पृथ्वीथी साधन तभरतभःप्रभा 2ी सुधी साते नजेमा मे ४२ स्थिति छ, (ज-यत्) विस्तारनु प्रभा (जासु-यस्यों) २ १२४मा (जुजइ-युज्यते) रे पापा શકાય તે ઘટાવવાનું છે,
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર