Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायासत्रे
दशविधः प्रज्ञप्तः) उत्तर-अरूपी अजीवराशि दस प्रकार की है (तं जहातद्यथा) जैसे (यम्मत्थिकाए जाव अद्धासमए-धर्मास्तिकायो यावत अद्भासमय:)धर्मास्तिकाय से लेकर थावत् अद्वासमय-काल तक भेद दस होते हैं (रूवा अज वरासी अणेगविहा पण्णत्ता-रूपी अजीवराशिरनेकविधः प्रज्ञप्त) रूपी अजीवराशि अनेक प्रकार की है (जाप-यावत) जैसे-स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु। (से किंत अणुनरोववाइया-अथ के ते अनुत्तरोपपातिकाः अनुत्तरोपपातिक का क्या स्वरूप है ? उत्तर(अनुत्तरोववाइया पंचविहा पण्ण - अनुत्तरोपपातिकाः पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः) अनुत्तरोपपातिक पांच प्रकार के कहे गये हैं (तं जहा-तद्यथा) वे इस प्रकार से हैं (विजयवेजयंजयंतअपराजित सव्वसिद्धियो-विजय वैजयंत जयन्तापराजितसर्वार्थसिद्धिकाः) बिजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सर्वार्थसिद्धिक । (सेतं अणुत्तरोव वाइया- त एते अनुत्तरोपपातिकाः) ये अनुत्तरोपपातिक हैं। (से तं पंचिंदियसंसारसमावण्णजीवरासी-स एष पञ्चेन्द्रियसंसारसमापन्नजीवराशिः ) इस प्रकार यह सब पंचेन्द्रिय युक्त संसारी जीवराशि है। (दुविहा णेण इयापणत्ता-द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः) नारकी जीव दो प्रकाह के कहे गये हैं (तं जहा-तद्यथा) जो इस तरह से हैं (पजत्ता य अपजत्ता य-पर्याप्ताश्च. जीवराशिः दशविधः प्रज्ञप्तः ) २५३५ी म०७२ ६५ प्र४।२नी छ. (तं जहा) तद्यथा-ते प्र४।२। मा प्रमाणे छ-(धम्मत्थिकाए जाव अद्धासमए-धर्मास्तिकायो यावत् अद्धासमयः) तना घस्तियथी सधने महासमय सुधीन। स लेह थाय छे. (रूवो अजीवरासी अणेगविहा पण्णत्ता-रूपी अजीवराशिरनेकविधः प्रज्ञप्तः) ३पी 49शि भने प्रारनी छ (जाव-यावत ) म २४५, १२१, प्रदेश मने ५२मा (से किं तं अणुत्तरोववाइया-अथ के ते अनुत्त
रोपपातिकाः) अनुत्त५पातिउनु ३ २१३५ छ ? उत्त२-(अणुत्तरोववाइया पंचविहा पण्णत्ता-अनुत्तरोपपातिकाः पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः) अनुत्तरे ५५ति पाय ५२नु छ, (तं जहा) तद्यथा-ते 20 प्रमाणे छे. (विजय, वेजयंत, जयंत अपराजित, सव्वट्ठसिद्धिया-विजयवैजयंतजयन्तापराजितसर्वार्थसिद्धिका:વિજય, વૈજયંત જયંત, અપરાજિત અને સર્વાર્થસિદ્ધક, એ પાંચ અનુત્તરેપ पति छ. (से त पंचिंदियसंसारसमावण्णजीवरासी-स एष पञ्चेन्द्रियसंसारसमापन्न जीवराशि:- प्रा२नी । मधी पायन्द्रियावाणी सारी ७१२॥थि छ. ( दुविहा णेरइयापण्णत्ता-द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ता:-)२४ ७ मे १२ना हाय छ, (तं जहा-तद्यथा) ते 241 प्रमाणे छे-(पजत्ता य
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર