Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भावबोधिनी टीका. द्वादशाङ्गस्वरूपनिरूपणम्
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टीका - संप्रति द्वादशस्य दृष्टिवादाङ्गस्यस्वरूपमाह से किं तं दट्टिवाए' अथ कोऽसौ दृष्टिवादः - उत्तरयति - 'दिट्टिवाए णं' दृष्टिवादे खलु दृष्टयो=दर्शनानि= मतानि बदनं वादः, दृष्टीनां वादः = कथनं यत्र स तस्मिन्, यद्वा-द्रष्टीना = सर्वनयद्रष्टीनां वादः=कथनंयत्र स तस्मिन् 'सव्वभावपरूवणा' सर्वभावप्ररूपणाः सर्वे च ते भावा:सूत्र में सामान्य और विशेष रूप से कथन है, (पण्ण विजति) प्रज्ञाप्यन्तेप्ररूपणा की गई है, (परू विज्जंति) प्ररूप्यन्ते - प्ररूपित की गई है (इंसिज्जति) दन्ते -दर्शित की गई है (निदंसिज्जति) निदर्यन्ते - निदर्शित की गई है ( वसिति) उपदर्श्यन्ते - उपदर्शित की गई है। (से एवं आया) स एवं आत्मा ( एव णाया ) एव ज्ञाता ज्ञाता ( एवं चिष्णाया ) एवं विज्ञाता ( एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ) एवं चरण - करणप्ररूपणा आख्यान्ते - इन सब पदों का अर्थ आचारांग सूत्र की व्याख्या में लिखा गया है वहां से देख लेना चाहिये। ( से त्तं दिट्ठिवाए ) स एव दृष्टिवाद :- यही दृष्टिवाद का स्वरूप है। (से त्तं दुबालसंगे गणिपिडगे) स एष द्वादशाङ्गो गणिपिटक : - इस प्रकार से गणिपिटकरूप द्वादशांग से आचारांग से लेकर दृष्टिवाद तक के अंगों से युक्त यह प्रबचनरूप पुरुष है ऐसा जानना चाहिये || सू० १८४ ॥
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'से किं तं दिट्टिवाए' इत्यादि । हे भदन्त ! दृष्टिवाद में समस्तमनों का अथवा समस्त नयरूप दृष्टियों का जिसमें कथन है ऐसे १२वें अंगमें
रायु छे. (पण्ण विज्जति) प्रज्ञाप्यन्ते - ३५ ४री छे, (परू विज्जति) प्ररू. प्यन्ते अतिथया छे, (दंसिजंति) दश्यन्ते - हर्शित उराया छे (निसिज्जति) façzd-à-faelu°ɑ saıyı 8, (39¿fassifa) 3qzzàzà-648lu'a saımı d, ( स एवं आया ) स एवं आत्मा ( एवं णाया) एवं ज्ञाता, ( एवं विष्णाया) एवं विज्ञाता ( एवं चरणकरणपरूवणा आयविजड़६) एवं चरणकरणप्ररूपणा आख्यायन्ते - माघां पहना अर्थ आया रांगसूत्र निषलु ४रती बमते याची हीधा छे. तो त्याथी लेई सेवा (से त्तं दिट्टिवाए ) स एष दृष्टिवादः - दृष्टिवा छनु शोवु स्वइच छे ( से तं दुवालसँगे गणिपिडगे) स एष द्वादशाङ्गो गणिपिटक:- –આ પ્રમાણે આચારાંગથી લઈને દૃષ્ટિવાદ સુધીના ગણિપિટકરૂપ બાર અંગથી યુકત આ પ્રવચનરૂપ પુરુષ છે તેમ સમજવુ liસૂ.૧૮૪
टीडार्थ "से किं तं दिट्टियाए" इत्यादि
હું ભન્ત ! દૃષ્ટિવાદનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઉત્તર—દૃષ્ટિવાદમાં-સમસ્ત મતાનું અથવા સમસ્ત નયરૂપ દૃષ્ટિયાનુ` જેમાં કથન છે એવા ખારમાં અંગમાં જીવાદિક
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર