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__ समवायाङ्गसूत्रे
तेरह १३ वस्तुएँ हैं। (किरिया विसालस्स णं पुवस्स तीसं वत्थू पण्णत्ता) क्रिया: विशालस्य खलु पूर्वस्य त्रिंशत् वस्तूनि प्रज्ञप्तानि-क्रियाविशाल पूर्व की तीस ३० वस्तुएँ हैं। (लोगबिंदुसारस्स पुवस्स पणवीसं वत्थ पण्णत्ता) लोकविन्दुसारस्य खलु पूर्वस्य पञ्चविंशति वस्तूनि प्रज्ञप्तानि-लोकबिन्दुसारपूर्व की पच्चीस २५ वस्तुएँ हैं। (से तं पुव्वगय) तदेतत् पूर्वगतं-यह पूर्वगत का स्वरूप है। (से किं तं अणुओगे) अथ कोऽसौ अनुयोगः-हे भदंत ! अनुयोग का क्या स्वरूप है ? उत्तर-(अणुओगे दुविहे पण्णत्ते) अनुयोगोद्विविधः प्रज्ञप्त:-सूत्र का अपने वाच्यार्थ के साथ जो संबंध है उसका नाम अनुयोग है। यह अनुयोग दो प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) तद्यथा-जैसे-(मूलपढमाणु ओगे य गंडियाणुओगे य) मूलप्रथमानुयोगश्च गण्डिकानुयोगश्च-मूलप्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग। (से किं तं मूल पढमाणुओगे ?)अथ कोऽसौ मूलप्रथमानुयोगः-वह मूल-प्रथमानुयोग का क्या स्वरूप है ? उत्तर-(एत्थ णं)अत्र खलु-इस मूलप्रथमानु-योग में (अरहंताणं भगवंताणं)अहंत भगवन्तों के(पुत्वभवा) पूर्वभवाः-पूर्वजन्म(देवलोग गमणाणि) देवलो-गमनानि-देवलोकगमन, (आउं) आयुः-आयु (चवणाणि) च्यवनानिदेवलोक से चवना, (जम्मणाणि) जन्मानि-जन्म, (अभिसेया) अभिषेकाःशालस्य खलु पूर्वस्य त्रिंशत् वस्तूनि प्रज्ञप्तानी-याविश पूनी ३० वस्तुमे छे. (लोगविंदुसारस्स पुवस्स पणवीसंवत्थू पण्णत्ता) लोकविन्दसारस्य खलु पूर्वस्य पञ्चविंशतिर्वस्तूनि प्रज्ञप्तानि-मिन्दुसार भूना पयास १२तुम। छे. (से तं पुव्वगय) तदेतत् पूर्वगतं- तनु ते २४ २१३५ छ.
(से किं तं अणुओगे)अथ कोऽसौ अनुयोगः? हे MErd ! अनुयागनु २१३५ उछ? (उत्तर-अणुओगे दुविहे पण्णत्ते) अनुयोगो द्विविधः प्रज्ञप्तःસૂત્રને પિતના વાગ્યાની સાથે જે સંબંધ હોય છે તેને અનુગ કહે છે. તેના मे २ छे. (तं जहा) तद्यथा-ते Pा प्रमाणे छ-(मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य) मूलप्रथमानुयोगश्च गण्डिकानुयोगश्च भूसा प्रथमानुय। मने आािनुयोग. (से किं तं मूलपढमाणुओगे ?) अथ कोऽसौ मूलप्रथमानुयोगःते भूसंप्रथभानु योग छ ? उत्तर-(एत्थणं) अन्न खलु-मा भूसमयमानुयोगमा (अरहंताणं भगवंताणं) अर्हतां भगवताम्-24°त लगवानाना(पुच्चभवा)पू मी, (देवलोकगमाणाणि)देवलोकगमनानि हे मन, (आउं) आयुः भायुष्य,(चच. णाणि) च्यवनानि समांथा व्यवन, (जम्माणाणि)जन्मानिसम, (अभिसेया)
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર