Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायाङ्गसूत्रे
छेइत्ता) यावन्ति भक्ता छेदयित्वा तथा जो मुनि जितने भक्तो का अनशन द्वारा छेदन करके (तमरयोघविप्पमुको ) तमो रजआघविप्रमुक्तः - अज्ञान और मलिनात्मक कर्मसमूह से रहित होकर (अंतगडो) अंन्तकृतः - अन्तकृतः - अन्तकृतः - कर्म का अन्त करने वाले हुए और (मोक्खसुहमणुत्तरं च पत्तो) मोक्षसुखमनुत्तरं च प्राप्तः - सर्वोत्कृष्ट मोक्ष सुख को प्राप्त हुए हैं। इन सब मुनियों की और महासतियों का इस वर्णन है। (एए अन्ने यमाई अस्था वित्थरेण परुविज्जंति) एते अन्ये च एवमादयः अर्थाः विस्तरेण प्ररूप्यन्ते - अब सूत्रकार विषय का उपसंहार करते हुवे कहते हैं कि इस प्रकार इस सूत्र में ये सब पूर्वोक्त विषय और इन्हीं विषयों जैसे और भी दूसरे विषय विस्तार के साथ वर्णित किये गये हैं। (अंतगडदसासु णं) अन्तकृतदशासु खलु अन्तकृतदशा में (परित्ता वायणा) परीता वाचनाः- वाचना संख्यात हैं, (संखेजा अणुओगदारा) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि - अनुयोगद्वार संख्यात हैं। (जाव संणेज्जाओ संगहणीओ) यावत् संख्याताः संग्रहण्यः - यावत् संग्रहणियां संख्यात हैं ( संखेजाओ पडिवत्तिओ) संख्याताः प्रतिपत्तयः - प्रतिपत्तियां संख्यात हैं। यहां यावत् शब्द से इन पदों का संग्रह हुआ है - 'संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संजाओ निज्जुत्तिओ' (सेणं अंगट्टयाए अट्टमे अंगे) सा खलु अंगार्थतया अष्टममङ्गम(जत्तियाणि भत्ताणि छेइत्ता) यावन्ति भक्तानि छेदयित्वा - तथा ने भुनि જેટલાં ભકતા (કર્મા) ... અનશન द्वारा छेन उरीने (तमर योधविष्पमुक्को) तमोरजओघ विप्रमुक्तः अज्ञान भने अलिनात्म४ उर्भ समूहथी रहित जनीने (अंतगडो) अन्तकृतः - अन्तङ्कृत भेना अंत ४२नार थया छे भने (मोखमुहमणुत्तरंचपत्तो) मोक्षसुखमनुत्तरं च प्राप्तः - सर्वोत्कृष्ट मोक्षसुमने पाया है, सेवा सघना भुनियो भने महासतियोनुं वर्णन या संगमां अयुं छे. (एए अन्ने य एवमई अत्थावित्यरेणं परूविजंति) एते अन्ये च एवमादयः अर्थाः विस्तरेण प्ररूप्यन्ते - या रीते या सूत्रमां पूर्वोऽत विषयोनु तथा मे अहारना अन्य विष योनु या विस्तारथी वर्णन उरवामां माव्यु छे. (अंतगहदसासु णं) अन्तकृत - दशासु खलु - तद्वृतशास्त्रमा (परित्ता वायणा) परीता वाचनाः- सभ्यात वायनाओ। छे, (संखेज्जाश्रणुओगदारा ) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि - सध्यात अनुयोग द्वार छे, (जाव संखेज्जाओ संग्रहणीओ) यावत् संख्याताः संग्रहण्यःત્યાંથી લઇને સ ંખ્યાત સંગ્રહણિયા છે, ત્યાં સુધીના પદ ગ્રહણ કરાયાં છે. અહીં 'यावत्' शब्दथी "संख्यात प्रतिपत्तियो छे, सांध्यात वेष्टडी छे, सभ्यात श्लोओ। छेने संख्यात नियुक्तियो" मे पहोना स ग्रहसमन्वानो छे (से णं अंगठयाए
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર