Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायाङ्गसूत्रे होना, (पुन बोहिलामा) पुनर्बोधिलाभः-फिर बोधि की प्राप्ति और (अंतकिरियानो) अन्तक्रियाः-अन्तक्रिया-मुक्ति की प्राप्ति (आघबिज्जति) आख्या. यन्ते-ये सब विषय वर्णित हुए हैं। इसी बात अब सूत्रकार विस्तार से कहते हैं (दुह विवागेसु णं) दुःखविपाकेषु खलु-दुख विपाक में (पाणाइवाय अलियवयण, चोरिककरण-परदारमेहुण-ससंगयाए) प्राणातिपाता. लोकवचनचौरिक्यकरणपरदारमैथुनससंगतया (पाणाइवाय) प्राणातिपातप्राणिहिंसा, (अलियवयण) अलीक वचन-असत्यभाषण, (चोरिककरण) चौरिक्यकरण-चोरीकरना, (परदारमेहुण) परदार मैथुन-परस्त्री सेवन (ससंगयाए) ससंगतया-इन पापकर्मों में आसत्ति रखना, (महातिव्वकसाय इंदियप्पमाय पावप्पओ य) महातीव्र कषायेन्द्रियप्रमादपापप्रयोगाश्चमहातीव्र कषाय, इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति, प्राणातिपातादिको में मन, वचन, काया को लगाना,इसीसे (असुहज्झवसाण संचियाणं)अशुभाध्यवसानैः संचितानां-अशुभपरिणामों से संचितानां-संचित-उपार्जित (पावगाणं कम्माणं) पापकानां कर्मणां-पापकर्मों का (पाव अणुभागफलविवागा) पापानुभागफलविपाका:-पापानुभागफलविपाक-अशुभरसवाला फलोदय होता है । इसका इसमें वर्णन है । तथा (निरयगइतिरिक्खजोणिबहुविहवसण प्रत्यायातानि-हेपामाथी २यपीने सा२ मा भास्तिन, (पुनबोहिलामा) पुनर्बोधिलाभः-शथी ने बिनी (जिनशासनrl) प्राप्तिनु', मने (अंकिरियाओ) अन्तक्रियाः-मन्तयिानु-मीक्षाप्ति (आधविज्जति) आख्यायन्ते-वन " छ वे सूत्रा२ मे - पातने पिस्तारथी समा छ-(दुहविवागेसु ण) दुःखविपाकेषु खलु-दु:विनi मध्ययनमा (पाणाइवाय)प्राणातिपात-
पासा , (अलियवरण) अलीकवचन-मसत्य भाषण, (चोरिकरण) चौरिक्यकरण-- योरी ४२पानी या, (परदारमेहुण) परदारमैथुन-~मने ५२वीसेवन,(ससंगयाए) ससंगतया- पा५४मा मासात रामवाणी (महतिव्वकसायइंदियप्पमाय पावप्पओ य) महातीव्रकषायेन्द्रियप्रमादपापपयोगाश्व-तथा महाती येथी ઈન્દ્રિયના વિષયમાં આસકિતથી, પ્રાણાતિપાત આદિમાં મન, વચન અને કાયાને सापाथी, (अमुहज्झवसाणसंचियाणं) अशुभाध्यवसानैः संचितानां-अशुभ परिणाभाथी पति (पावागाणं कम्माणं) पापकानां कर्माणां-पापभने। (पावअणुभागफलविवाग) पापानुभागफलविपाका:--पा५ नुमा विषा रे અશુભ રસવાળો ફળદય થાય છે તેનું આ અંગમાં વર્ણન કર્યું છે. તથા ( निरयगइ-तिरिक्खजोणि-बहुविवसणसयपरंपरापव्वद्धाणं ) निरयगति
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર