Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भावबोधिनी टीका. एकादशाङ्गस्वरूपनिरूपणम् जल छिडका२ कर उसमें कपकपी करवाना, (थिर बंधण) स्थिर बन्धनरस्सियों अथवा श्रृंखलाओं से शरीर को जकड कर बांध दिया जाना, (वेह) वेध-कुन्तभाले आदि शस्त्रों से शरीर का भेदा जाना, (वज्झकत्तण) वध्यकर्तन-पापी के शरीर से जीते जी चमडी का-खाल का निकलवा लिया जाना, (पइभयकर करपल्लीवणाइ) प्रतिभयकरकरप्रदीपनं- दसरों को भयंकर हो इस प्रकार के अभिप्राय से पापीजन के हाथों को वस्त्रों से वेष्टित कर और उनपर मिट्टी का तेल छिडककर उनका जलवा दिया जाना, (दारुणाणि) दारुणानि-इत्यादि असह्यदुःख (अणोवमाणि दुक्खाणि) अनुपमानि दुःखानि-अतिशय दुःखों का वर्णन इसमें है। (बहुविविहपरं. पराणुबद्धा) बहुविविध-परंपरानुबद्धाः-बहुतप्रकार के दुःखपरंपरा से अनुबद्ध जीव (पावकम्मवल्लीए न मुचंति) पापकर्म वल्याः न मुच्यन्ते-पापी जीव अशभकर्मो से जबतक कि उनका पूरा फल भोग न होजावे तबतक नहीं छूट सकते है। अब कैसे मुक्ति प्राप्त करते है सो कहते हैं-(धिइधणिय बद्धकच्छेण तवेण) धृत्यतिबद्धकच्छेन-अहिंसक चित्तवृति रूप धैर्य से जिसने मजबूती के साथ अपनी कांछ को बांध लिया है ऐसा व्यक्ति तपस्या के द्वारा(सोहणं तस्स वावि हुजा) शोधनं तस्य वापि भवन्तिनिकाचित कर्म के सिवाय पापकर्म का भी शोधन कर सकता है। अब પર બરફ જેવા ઠંડા પાણીનું સિંચન કરીને શરીરમાં ધુજારી ઉત્પન્ન કરાવવાનું, (थिरबंधण) स्थिर बंधन-हो२७i Aथवा सांगे 43 शरीरने ४० शते ४४ी हेवानु, वे ) वेध-मास माह मणीहार सोथी शरीरने वाधवानु, (वज्झकत्तण) वध्यकर्तन-पापीना शरीर ५२नी यामी तावानु, (पइभयकरकर पल्लीव [इ) प्रतिभयकरकरप्रदीपनं---मीने भय ५भावाने भाटे पापी से छीना लायने १२त्राथी सटीने तेना ५२ तेनु सियन रीन ते सापवानु', (दारुणाणि) दारुणानि-त्या Rai असह्य भने (अगोषमाणि दुक्खाणि) अनुपमानि दुःखानि-मनु५५ ६३१ मार्नु पर्वा न मा सूत्रमा यु छ. (बहुविविह परंपराणुबद्धा ) बहुविविधपरंपरानुबद्धाः । प्रा२ना हु: ५५२ पाथी २५नुमद्ध (पापकम्मवल्लीए न मुच्चंति) पापकर्मवल्याः न मुच्यन्ते-पापी लो यां સધી અશુભકર્મોનું પૂરેપૂરું ફળ ભોગવી લેતાં નથી ત્યાં સુધી તેમાંથી છૂટી શકતાં नथी, तेमा की शत तमाथी टी श छे ते सूत्रधार हुवे मतावे छे-(धिइधणियबद्धकच्छेण तवेण) धृत्यतिबद्धकच्छेन-मसि यित्तवृत्ति३५ धैय थी २। टिम च्या छ तेषां त५२या द्वारा (सोहणं तस्स वावि हुजा) शोधनं तस्य वापि भवन्ति-
नियत ४ सिवायना ५५४मनु ५५५ शोधन ४२॥ ॐ
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર