Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायाङ्गसूत्रे
बहुत ही मुश्किल से अध्ययन करने योग्य जो प्रवचन तत्व हैं (सव्वसम्बन्नुसम्मयस्स) सर्वसर्वज्ञसंमतस्य-जो समस्त सर्वज्ञों को मान्य (अवुहजणविबोहणकरस्स) अवुधजन विबोधनकरस्य-एवं अबुधजनों के लिये बोध दाता हुआ है और है (पञ्चक्खपच्चयकराणां) प्रत्यक्षकप्रत्ययकराणां-उसके साक्षात्प्रबोधक ऐसे (पाहाणं) प्रश्नानां-प्रश्नों के प्रश्न विद्याओं के (जिणवरप्पणीया) जिनवरप्रणीताः-जो अनेक प्रकार के गुण हैं कि जिनसे वे शुभ और अशुभ सूचन आदि करने रूप गम्भीर अर्थ से भरे हुए हैं विवि. हगुणमहत्था) विविधगुणमहार्थाःये विविधगुण-महार्थ जिनवर प्रणीत हैं-कल्पित नहीं हैं ऐसे विविध गुणमहार्थ(आधविज्जति)आख्यायन्ते-इस अंग में कहे गये हैं। (पण्हावागरणेसु णं) प्रश्नव्याकरणेषु खलु-इस प्रश्नव्याकरण अंग में (परित्ता वायणा) परीताः-वाचनाः-संख्यात वाचनाएँ हैं। (संखेज्जा अणु.
ओगदारा) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि-संख्यात अनुयोगद्वार हैं। (जाव संखेजाओ संगहणीओ) यावत् संख्येयाः संग्रहण्य:-यावत संग्रहणियां संख्यात है (से गं अंगट्टयाए-दसमे अंगे) सा खलु अंगार्थतया दशमं अङ्गम्-अग की अपेक्षा यह दशमां अंग है। (एगे सुयक्खंधे) एकः श्रुतस्कन्धः-इसमें एक श्रुतस्कंध है। (पणयालीसं उद्देसणकाला) पश्च चत्वारिंशत् उद्देशनकाल:साथी अध्ययन ४२री शय ते २ प्रक्यन तत्व छे, (सव्व-सव्वन्नुसम्मयस्स) सर्वसर्वज्ञसंमतस्य- समस्त सर्पशो वडे मान्य छे ( अबुहजणविबोहणकरस्स) अबुधजनविबोधकरस्य-२मने रे अमुधोने माता पनेस छ, ( पच्चक्खयपच्चयकराणं ) प्रत्यक्षकप्रत्ययकराणां-तेने। प्रत्यक्ष माध माना। (पहाणं) प्रश्नोना-प्रश्न विधामाना (जिणवरप्पणीया ) जिनवरमणीताःજે અનેક પ્રકારના ગુણ છે અને જે ગુણોને લીધે તેઓ શુભ અને અશુભનું સૂચન या ४२५३५ ली२ मथ थी मा छे (विविहगुणमहत्था) विविधगुणमहार्थाःતે વિવિધ ગુણયુકત અર્થો જનવર પ્રણીત છે,-કલ્પિત નથી, એવા વિવિધગુણમહાર્થનું (आधविज्जंति) आख्यायन्ते मा ममा ४थन युके (पण्हावागरणेसु णं) प्रश्नव्याकरणेषु खलु मा प्रनव्या४२९॥ ममा (परिता वायणा) परीता. वाचना:-सण्यात वायनायो छे. (संखेजा अणुओगदारा) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि-सज्यात अनुया२ छे, (जाव संखेजाओ संगहणीओ) यावत् संख्येयाः संग्रहण्यः-मे प्रमाणे सध्यात सहा त्यां सुधीना पह। अडए थया छ. (से गं अंगठ्ठयाए दसमे अंगे) सा खलु अंगार्थतया दशमं अङ्गम्मानी अपेक्षा ते शY 241 . (एगे सुयक्खंधे) एकः श्रुतस्कन्ध:-तेमा मे४ श्रुत२४५ छ, (पणयालोसं उद्देसणकाला) पञ्च चत्वारिंशत् उद्देशनकाला:
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર