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भावबोधिनी टीका. षष्ठाइस्वरूपनिरूपणम् नाश करने वाले (सासणम्मि)शासने-जिनशासन में (डिया) स्थिता-स्थित हुवे अर्थात् जिनशासन में आये उनका इस अंगमें वर्णन है। तथा-(आराहिय संजमा य) आराधितसंयमाश्च-संयम को आराधन करने वाले ( सुरलोगपरिनियत्ता ) सुरलोक प्रतिनिवृत्ताः-देवलोक जाकर पीछे आये हुवे (जह) यथा-जैसे (सासयं सिवं सव्वदुक्खमोक्खं)शाश्वतं शिवं सर्वदुःखमोक्ष-शाश्वत्-नित्य,शिव-कल्याणकारी सब दुःखों से रहित मोक्ष को (उति) उपयन्ति-माप्त करते हैं उनका इस अंग में वर्णन है। (एए अण्णे य एवमाई) एते अन्ये च एवमादिका ये सब पूर्वोक्त विषय तथा इसी प्रकार के विषय (अत्यवित्थरेण य) अत्र विस्तारेण च-विस्तार से इस अंग में वर्णित है। (गायाधम्मकहासु णं) ज्ञाताधर्मकथासु खलु-ज्ञाता धर्मकथा के अन्दर (परित्ता वायणा) परीता वाचनाः-संख्यात वाचनायें हैं, (संखेज्जा अणुओगदारा) संख्याता अनुयोगद्वाराणि-संख्यात अनुयोगद्वार हैं, (जाव संखेजाओ पडिवत्तीओ) यावत् संख्याताः प्रतिपत्तयः-संख्यात प्रतिपत्तियों हैं, यहां यावत् शब्दसे "संख्यात वेष्टक हैं, संख्यात श्लोक हैं, संख्यात--नियुक्तियां हैं, और संख्यात संग्रहणियां हैं' इस अनुक्त पाठ का संग्रह हुभा है। (से गं अंगठ्याए ४२।२ (सासागम्मि)शासने-लिन शासनमा (टिया) स्थिता-मा०या मेटले हैं Crनसनमा ५८ प्या, तेतु पन. Al Ani छ. तया (आराहिय संजमा य (आराधित संयमाच-सयमनु सन २नास (सुरलोग परिनियत्ता) सरलोकप्रतिनिवृत्ता:-सामाथी २यवीन मावता (जह) यथा-वी शते (सासयं सिवं सव्वदुक्खमोक्ख)शाश्वतं शिवं सर्वदःखमोक्ष-शाश्वत (नित्य), शिव (४८या।1) समस्त माथी २डित मोक्षने(उति)उपयन्ति-प्रति ४२ छ, तनु न 241 ममा ४२रायु छे. [ए ए अण्णे य एवमाई] एते अन्ये च एवमादिका-पूरत से या विषयानु तथा मे प्रश्न अन्य विषयानु ५७ (अत्था वित्थरेण य) अत्र विस्तारेण च-al Awi विस्तारपूर्व १४न ४२।यु छ (णाया धम्मकहासु णं] ज्ञाताधर्मकथासु खलु--ज्ञाता ४थामा (परित्ता वायणा) परीता वाचना:-ज्यात वायना छ, (संखेजा अणुओगदारा) संख्याता अनुयोगद्वाराणि-यात मनुयोगबा२ , (जाव संखेजाओ पडिवत्तीओ)यावत् संख्याताः प्रतिपत्तयः-सज्यात प्रतिपत्तियो ત્યાં સુધીના પદો સમજવાનાં છે એટલે “સંખ્યાત વેષ્ટ છે, સંખ્યાત લેકે છે. સંખ્યાત નિયુકિત છે, અને સંખ્યાત સંગ્રહણિ છે.” આ પદને સંગ્રહ સમજવાને
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર