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भावबोधिनो टीका. षष्ठाङ्गस्वरुपनिरूपणम् -संसार मे अनत क्लश से युक्त जो नारक, निर्यश्च, कुमनुष्य, कुदेव में जन्मरूप दुर्गति भव हैं उनके जो अनेक परम्परा उनका विस्तार इस अंग में कहा जाता है। (धीराण य जियपरीसहकसाय सेण्णधिइध. णिय संजम उच्छाहनिच्छियाणं) धीराणां जितपरीषहकषायसैन्यधृतिधनिकसंयमोत्साह-निश्चितानाम्-परीषहकषाय रूप सैन्य को जीतने वाले तथा धैर्यरूप धनवाले, सयमात्साह से निश्चित-युक्त अर्थात् संयम को निरन्तर पालने के निश्चयवाले धीराणां-धीरों का इसमें वर्णन है। (अाराहियनाणदसणचरित्तजोगनिस्सल्ल सुद्धसिद्धालयमग्गमभिमुहाणं ) पाराधितज्ञानदर्शनचारित्रयोगनिःशल्यशुद्धसिद्धालयमार्गाभिमुखानाम्-( आराहियनाणदंसणचरित्तजोग) आराधितज्ञानदर्शनचारित्रयोग--ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप योगों को आराधित करने वाले तथा (निस्सल)निःल्य-माया. दिशल्य रहित (सुद्ध) शुद्ध-अतिचार रहित जो(सिद्धालयमग्ग)सिद्धालय मार्ग-मोक्षमार्ग के(अभिमुहाणं) अभिमुखानाम्-संमुख-अर्थात्-मोक्ष मार्ग पर चलने वाले उनका इसमें वर्णन है। (अणोयमाई) अनुपमानि-अनुपम (सुरभवणविमाणसोक्खाई) सुरभवनविमानसौख्यानि-देव जन्म के जो विमान संबंधी वैमानिकसुख उनका इस अंग में वर्णन हैं। तथा-(ताणिदिव्वाणि महारियाणि तान् दिव्यान् महाणि-महाह-अतिप्रशस्ततान्देव लोक संबंधी (भोगभोगाणि ) भोग भोगान्-प्रचुरतरमनोऽभिलषित દુઃખથી યુકત નારક, તિય ચ, કુમનુષ્ય અને કુદેવમાં જન્મ લેવા રૂપ જે દુર્ગતિलव छ. तेमनी ५२५रानुन
मा शयु छे. ( धीराण य जियपरीसहकसायसेण्णधिइधणियसंजमउच्छाहनिच्छियाणं ) धीराणां जितपरीषहकषाय सैन्यतिधनिकसंयमोत्साहनिश्चितानाम--परिषद प्राय રૂપ સિન્યને જીતનાર તથા ધરૂપ ધનવાળાં સંયમનું નિરન્તર પાલન કરવાના દઢ निश्चयवाणा पीर पुरुषोनु मा मा पन ४२॥यु 2. (आराहिय नाणदंसण चरित्त-जोग-निस्सल्ल-सुद्ध-सिद्धालय-मग्गमभिमुहाणं ) आराधितज्ञान
दर्शनचारित्रयोग निःशल्यशुद्धसिद्धालयमार्गाभिमुखानाम्--शान, शिन भने यात्रि३५ यागानी माराधना ४२।२। तथा (निस्सल्ल) माया मा िशक्ष्य हित, (सुद्ध)शुद्ध-मतिया२ २डित,(सिद्धालयमग्ग)मोक्षमा (अभिमुहाणं)स भुम (भक्षमागे यास ) वोनु न म मा यु छ.(अणोचमाइं) अनुपमानि-अनुपम (सुरभवणविमाणसोक्खाइं) सुरभवनविमानसौख्यानि-हे मना वैमानि सुमनु वन PAL Ai ४२६यु छ. तथा (ताणि दिव्वाणि महारियाणि) तीन दिव्यान् महार्हाणि-हेवन! मति प्रशस्त (भोगभोगाणि) भोग भोगान्
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર