Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भावबोधिनी टीका. सप्तमाङ्ग स्वरूपनिरूपणम्
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नादि विचित्रतप, ( सीलव्वय गुण वेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासा) शीलव्रतगुणवेरमणप्रत्याख्यानपोषधोपवासाः-शील तथा व्रत, गुणव्रत, मिथ्यात्वादि से विरक्ति, प्रत्याख्यान एवं पोषधोपवास ये सब कहे गये हैं । (अपच्छिममारणंतिया य संलेहणाझोसणाहिं' अपश्रिम मारणान्तिकात्म संलेखना जोपणाभिः - तप से और रागादिकों के जीतने से शरीर और जीव के कृश करनेरूप अपश्चिम - सर्वोत्कृष्ट - ऐसी मरण के लिये धारण की गई संलेखना के सेवन से (अप्पार्ण जह य भावइत्ता आत्मानं यथा च भावयित्वा - आत्मा को अपने आप को - भावित करके, जो श्राचक अनेक भक्तों का अनशन द्वारा छेदनकर देते हैं । (कप्पवर विमाणुत्तमेसु उचवण्णा) कल्पवर विमानोत्तमेषु उत्पन्नाः- उत्तम कल्पों के श्रेष्ठ विमानों में उत्पन्न होकर 'सुरविमाण पुंडरीएस' सुरवरविमानपुंडरिकेषु - उन सुरविमानरूपी उत्तम पुडरीकों में - मनःप्रसाद जनक होने के कारण कमल जैसे उनश्रेष्ठ विमानों में (अणोवमाई सोक्खाई जह अणुभवंति ) अनुपमानि सौरूयानि यथा अनुभवन्ति - जैसे२ अनुपम सुखों को भोगते हैं (कमेण भुत्तूण उत्तमाइ) क्रमेण भुक्तवा उत्तमानि - क्रमशः उन उत्तमसुखों के भोगने के बाद (तओ) ततः - वहां से (आउक्खएण) आयुक्षयेण - आयु के समाप्त વિચિત્ર તપ, ( सीलव्वयगुणवेरमणपश्ञ्चक्रवाणपोसहोववासा) -- शीलव्रतगुण वेरमणप्रत्याख्यान पोषधोपवासाः-शील तथा व्रत, गुणव्रत, मिथ्यात्व माद्दिथी विरक्ति, प्रत्याभ्यान भने योषधोपवास, मे धानु उथन उरायु छे (अपच्छिममारणंतियाय संलेहणा झोसणाहिं ) पश्चिममारणन्तिकात्म संलेखना जोषणाभिः- तपथी भने राजाहिने कुतवाथी शरीर भने लबने देश १२नार मेवी अपश्चिम- सर्वोत्कृष्ट भरगुने भाटे धारण ४२वामां आवेली सोमनाना सेवनथी [अप्पाणं जह य भावइत्ता ] आत्मानं यथा च भावयित्वा - खात्माने लावित अरीने ने श्रावङ खनेङ लङतोनु अनशन द्वारा छेहन हरी नामे छे (कप्पवर विमाणु
मेसु उववण्णा) कल्पवर विमानोत्तमेषु उत्पन्नाः- उत्तम उपानां श्रेष्ठ विभा नामां उत्पन्न थाने ( सुरवर विमाण पुंडरी एस ) सुरवर विमान पुंडरिकेषुતે દેવમાનરૂપી ઉત્તમ પુડરીકામાં-મનને માટે આનંદદાયક એવાં કમળ જેવાં श्रेऽविभानोमा (अणोचमाई सोवखाई जह अणुभवंति ) अनुपमानि सौख्यानि यथा अनुभवन्ति - Sal वां अनुषभ सुमोने लागवे छे. मने (कमेण भुत्तूणउत्तमाइ) क्रमेण भुक्त्वा उत्तमानि ते उत्तम सुमोनो उमशः उपलोग य पछी (तओ) ततः - त्यांथी ( आउक्खएण) आयुक्षयेण - मायुष्य
સમાપ્ત થતાં
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર