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समवायाङ्गसूत्रे होते ही (चुयासमाणा) च्युताः सन्तः-चवकर (जह) यथा-जिस तरह (जिणमयंमि) जिनमते-जिनशासन में स्थित होते हैं [बोहिलण य संजमुत्तम)बोधिं लब्धा च संयमोत्तमाम्-संयम से प्रशस्तबोधि को प्राप्त कर जिस तरह से (तमरयोघविप्पमुक्का) तमरजओघविप्रमुक्ताः -तमअज्ञान एवं रज-पापोत्पादककर्म-इन दोनों के समूह से रहित बनते हुए (सव्वदुक्खमोक्खं) सर्वदुःखमोक्षम्-सर्वदुःखों से रहित (अक्खयं) अक्षयं क्षय. रहित मुक्तिस्थान को (उवेंति) उपयन्ति-प्राप्त करते हैं, इनसबबातों की प्ररूपणा इस अंग में है। (एए अन्ने य एवमाई अथा वित्थरेण य) एते अन्ये च एवमादयअर्थाः विस्तरेण च-इस तरह इस सूत्र में ये पूर्वोक्त विषय और इसी प्रकार के और भी दूसरे विषय विस्तारपूर्वक प्रतिपादित किये गये हैं। (उवासयदसासु णं) उपासकदशासु खलु-इस उपासकदशासूत्र में (परित्ता वायणा) परीताः वाचनाः-वाचना संख्यात हैं, (संखेजा अणुओगदारा) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि-अनुयोगद्वार संख्यात हैं (जाव संखेजाओ संगहणीओ) यावत् संख्याताः संग्रहण्यः-यावत् संग्रहणियां संख्यात हैं। यहां यावत् पद से (संखेजा वेढा) संख्याता वेष्टका:वेष्टक संख्यात हैं,(संखेजा सिलोगा)संख्याताः श्लोकाः-श्लोक संख्यात हैं, (चुया समाणा) च्युताः सन्त;-24वीन (जह) यथा-वी रीत (जिणमयंमि) जिनमते-नशासनमा स्थित थाय छ,(बोहि लक्षण य संजमुत्तम)बोधिलब्धाश्च संयमोत्तमाम्-सयमयी प्रशस्त मोधिने प्रात ४ीन पीते(तमरयोघविप्पमुक्का) तमरजोधविप्रमुक्ताः --तम- मशान मने. २४-पापोत्या६४ भ. ये मन्नना समूथी २६त मनाने (सव्वदक्वमोक्ख) सर्वदुःखमोक्षम-समस्त माथी २हित, (अक्खयं) अक्षय-क्षय २डित भोक्षने (उति) उपयन्ति-प्रात ४२ छ, से मधी मामतानी प्र३५९॥ २॥ ममा ४२वाम मावी छे. (एए अन्नेय एवमाई अत्था वित्थरेण य) एते अन्ये च एवमादय अर्थाः विस्तरेण च--21 સૂત્રમાં ઉપરોકત વિષયનું તથા એજ પ્રકારના અન્ય વિષયનું પણ વિસ્તારપૂર્વક प्रतिपादन यु छ. (उवासयदसामु णं)उपासकदशासु खलु-मा पास४६॥ सूत्रमा (परिता वायणा) परीताः वाचनाः-स'ज्यात वायनमा छ, (संखेजा अणुओगदारा) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि-सभ्यात मनुयोग द्वा२ छ, (जाव संखेजाश्रो संगहणीओ) यावत् संख्याताः संग्रहण्यः-त्याथी बने સંખ્યાત સંગ્રહણિઓ છે ત્યા સુધીના પદ એટલે કે “સંખ્યાત વેષ્ટકો છે, સંખ્યાત यो। छ, सन्यात प्रतिपत्तिये। छ,” मा पनि समावेश यावत्' ५४थी ४२।। छे
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર