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________________ ७६६ समवायाङ्गसूत्रे होते ही (चुयासमाणा) च्युताः सन्तः-चवकर (जह) यथा-जिस तरह (जिणमयंमि) जिनमते-जिनशासन में स्थित होते हैं [बोहिलण य संजमुत्तम)बोधिं लब्धा च संयमोत्तमाम्-संयम से प्रशस्तबोधि को प्राप्त कर जिस तरह से (तमरयोघविप्पमुक्का) तमरजओघविप्रमुक्ताः -तमअज्ञान एवं रज-पापोत्पादककर्म-इन दोनों के समूह से रहित बनते हुए (सव्वदुक्खमोक्खं) सर्वदुःखमोक्षम्-सर्वदुःखों से रहित (अक्खयं) अक्षयं क्षय. रहित मुक्तिस्थान को (उवेंति) उपयन्ति-प्राप्त करते हैं, इनसबबातों की प्ररूपणा इस अंग में है। (एए अन्ने य एवमाई अथा वित्थरेण य) एते अन्ये च एवमादयअर्थाः विस्तरेण च-इस तरह इस सूत्र में ये पूर्वोक्त विषय और इसी प्रकार के और भी दूसरे विषय विस्तारपूर्वक प्रतिपादित किये गये हैं। (उवासयदसासु णं) उपासकदशासु खलु-इस उपासकदशासूत्र में (परित्ता वायणा) परीताः वाचनाः-वाचना संख्यात हैं, (संखेजा अणुओगदारा) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि-अनुयोगद्वार संख्यात हैं (जाव संखेजाओ संगहणीओ) यावत् संख्याताः संग्रहण्यः-यावत् संग्रहणियां संख्यात हैं। यहां यावत् पद से (संखेजा वेढा) संख्याता वेष्टका:वेष्टक संख्यात हैं,(संखेजा सिलोगा)संख्याताः श्लोकाः-श्लोक संख्यात हैं, (चुया समाणा) च्युताः सन्त;-24वीन (जह) यथा-वी रीत (जिणमयंमि) जिनमते-नशासनमा स्थित थाय छ,(बोहि लक्षण य संजमुत्तम)बोधिलब्धाश्च संयमोत्तमाम्-सयमयी प्रशस्त मोधिने प्रात ४ीन पीते(तमरयोघविप्पमुक्का) तमरजोधविप्रमुक्ताः --तम- मशान मने. २४-पापोत्या६४ भ. ये मन्नना समूथी २६त मनाने (सव्वदक्वमोक्ख) सर्वदुःखमोक्षम-समस्त माथी २हित, (अक्खयं) अक्षय-क्षय २डित भोक्षने (उति) उपयन्ति-प्रात ४२ छ, से मधी मामतानी प्र३५९॥ २॥ ममा ४२वाम मावी छे. (एए अन्नेय एवमाई अत्था वित्थरेण य) एते अन्ये च एवमादय अर्थाः विस्तरेण च--21 સૂત્રમાં ઉપરોકત વિષયનું તથા એજ પ્રકારના અન્ય વિષયનું પણ વિસ્તારપૂર્વક प्रतिपादन यु छ. (उवासयदसामु णं)उपासकदशासु खलु-मा पास४६॥ सूत्रमा (परिता वायणा) परीताः वाचनाः-स'ज्यात वायनमा छ, (संखेजा अणुओगदारा) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि-सभ्यात मनुयोग द्वा२ छ, (जाव संखेजाश्रो संगहणीओ) यावत् संख्याताः संग्रहण्यः-त्याथी बने સંખ્યાત સંગ્રહણિઓ છે ત્યા સુધીના પદ એટલે કે “સંખ્યાત વેષ્ટકો છે, સંખ્યાત यो। छ, सन्यात प्रतिपत्तिये। छ,” मा पनि समावेश यावत्' ५४थी ४२।। छे શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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