Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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કદર
समवायाङ्गसूत्रे भोगों को (चिरं भुत्तुण) चिरं मुत्तवा-बहुत कालतक भोग करके (तो) तत:-वहां से (कालकमचुयाणं) कालक्रमच्युतानां देवलोक का आयु संपूर्ण कर वहां से चवे हुए (पुणो) पुन:-फिर (लद्धसिद्धिमग्गाणं) लब्धसिद्धिमार्गानाम्-मोक्षमार्ग को प्राप्त करने वाले उनका (जहा)यथा-जैसे इनकी (अंतकिरिया) अन्तः क्रियामुक्ति होती है उनका इसमें वर्णन है । तथा (चलियाणय)चलितानां च-मोक्षमार्ग से चलित(सदेवमाणुस्सधीरकरणकार. जानि) सदेव-मनुष्य धीरकरणकारणानि-देव सहित मनुष्या को धीरकरणेस्वमार्गगमन में दृढता संपादन करने के हेतुभूत (बोधण अणुसासणाणि) बोधनानुशासनानि-बोधन-इस रीति से संयम आराधना करनी चाहिये इत्यादि कथनरूप अनुशासन-कैसे संयम से पतित होते हो इस बात की प्ररूपणा इसमें हैं तथा(गुणदोस दरिसणाणि) गुणदोषदर्शनानि-संयम आराधन में गुण है और उसकी विराधना में (दरिसणाणि) दर्शनानिदर्शकवाक्यों का इस में कथन है । (लोगमुणिणो) लोकमुनयः-लोकमुनिशुकपरिव्राजक आदि संन्यासीलोग (दिट्टते) दृष्टान्तां-दष्टान्तों-उदाहरणों को (पञ्चये य) प्रत्ययांश्च-बोधजनक वाक्यों को (सोऊण) श्रुत्वा-सुन करके (जह) यथा-जैसे (जरमरणनासकरे) जरामरणनाशनकरे-जरा, मरण को भने भानवांछित लोगोने (चिरंभुत्तूण) चिरं भुक्तवा aint समय सवीन (तओ) ततः-त्यांथी (कालकमचयाण) कालक्रमच्युतानां-।नु आयुष्य ५३ ४शन-२५वीन, (पुणो) पुनः-३२Nथी (लद्धसिद्धिमग्गाणं) लब्धसिद्धिमार्गानाम्-भासमान प्राप्त ४२नारानु तथा (जहा) ४४ रीते तेमनी अंतकिरिया) अन्तःक्रिया-मुहित थाय छे तेनु वर्णन Ram मा ४२॥यु छ. तथा (चलियाण य) चलितानां च-मोक्षमाथी यतित (सदेवमाणुस्सधीरकरण कारणानि) सदेवमनुष्यधीरकरणकारणानि--हे। तथा मनुष्याने [धीरकरणे] स्वभा मनमा ४ढता सपान ४२वाना ४१२९३५ (बोधण आणुसासणाणि) बोधनानुशासनानि-माधन-सयभनी आराधना वी ते ४२वी જોઈએ અને કેવી રીતે સંયમના માર્ગેથી પતન થાય છે. તેની પ્રરૂપણ આ અંગમાં ४२वामां आवी छ. तथा (गुणदोसदरिसणाणि) गुणदोषदर्शनानि-सयभनी माराधनामा गु भने तेनी १२नामा होष छ, मे २ना (दरिसणाणि) दर्शनानि-श पायानु ४थन Ani ४२।यु छ. (लोग मुणिणो) लोक मुनयः-मुनि-शुपरिमामाह सन्यासी (दिढते) दृष्टान्तां-GISणेने तथा [पञ्चयेय] प्रत्ययाश्च-मोहाय पायाने (सोऊण)श्रुत्वा सामगाने (जह) य था- शेते (जरमरणनासकरे) जरामरणनाशनकरे-४२॥ भरघुना ना
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર