Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भावबोधिनी टीका. षष्ठाङ्गस्वरूपनिरूपणम्
७३९ का स्वरूप निरूपण करते समय लिख दिया गया है। सो वहां से देख लेना । तथा (णायाधम्मकहासु णं) ज्ञाताधर्मकथासु खलु-ज्ञाताधमकथामें (विणयकरणजिणसामिसासणवरे पव्वइयाणं) विनयकरणजिनस्वामि शासनवरे प्रजितानां-विनयमूलकवर्धमानप्रभु के श्रेष्ठ शासन में प्रव्र जितों का (संजमपइण्णपालनधिइमइयवसायदुब्वलाणं) संयमप्रतिज्ञापालन धृतिमतिव्यवसायदुर्बलानाम्-१७ सतर प्रकार के सावध विरतिरूप संयम का पालन में हेतुभूत चित्तसमाधिरूप धैर्य से, सदअसद विवेक. रूप बुद्धि से और गृहीतत्रतों के परिपालन करने में उत्साहरूप व्यव. साप से दुर्बलकातर बने हुए हैं इनकी प्ररूपणा इस अंग में हैं । तब नियम तवोवहाणरणदुद्धरभरभग्गणिस्सहयणिसिट्ठाणं) तपोनियमतप उपधानरणदुर्धरभरभग्नकनिःसहकनिसृष्टानाम्-(तव)तप-अनशनादिरूप बारह प्रकार का तप, (नियम) नियम-अभिग्रहविशेषरूपनियम, (तवोवहाण) तप उपधान-उग्र तप करना (रण) रण ये तीनोंरूप रण-संग्राम तथा ये तीनोंरूप (दद्धरभर) कठिनाई से वहन करने लायक भार इन दोनों से भग्नकपराजित (हारे हुए) अत एव निःसहक शक्तिरहित होने से इसीसे निसृष्ट-संयमके आराधना करने में सामर्थ्य से वर्जितों का इस अंग में તેમને અર્થ આચારાંગનું સ્વરૂપ નિરૂપણ કરતી વખતે આપી દેવાય છે, તે ત્યાં તે અર્થ वांची सेवा तथा (णायाधम्मकहासु णं) ज्ञाताधर्मकथासु खलु-ज्ञाता यम थामा ( विणयकरणजिणसामिसासणवरे पबइयाणं) विनयकरणजिनस्वामिशासनवरे प्रव्रजितानां-विनयभूस४ १ भान प्रभुना श्रेष्ठ शासनमा प्रaina थयेला
संजमपइण्णपालनधिइमइववसायदुब्वलाणं-संयमप्रतिज्ञापालनधृतिमति व्यवसायदुर्बलानाम्-~१७ ३४२ना सावध विरति३५ सयमना पासन मर्थ वित्तસમાધિરૂપ ધૈર્યથી, સારા નરસાના વિવેકરૂપ બુદ્ધિથી, અને ધારણ કરેલા વ્રતનું રેગ્ય રીતે પાલન કરવાના ઉત્સાહરૂપ વ્યવસાયથી દુર્બલ બનેલા સાધુઓનું વર્ણન કરાયું છે.
तवनियमतवोवहागरणदुद्धरभरभग्गणिस्सहयणिसिट्ठाणं-तपोनियमतपउपधानरणदुर्धर भरभग्नक निःसहक निसृष्टानाम्---(तव ) मन मा ४ी२ना त५, (नियम) विशिष्टमलि३५ नियम, (तवोवहाण) तपउधान-GA२i तय, (रण) ऐ ३५ २४साम, तथा ये त्राणे ३५ [दुद्धर भर] भामुश्ती पाइन ४६१ शय त ला२, से मन्नेथी ४२ (निःसहक) तमना पासनने भाटेनी रे तन मे ते शतिथी २डित मनेा-(निसृष्ट) सयभनु पालन કરવાને અસમર્થ બનેલા એવા સાધુઓનું વર્ણન આ અંગમાં કરાયું છે. તથા
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર