Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भावबोधिनी टीका. पश्चमाजस्वरूपनिरूपणम्
७२५ 'वियाहे णं' व्याख्यायां खलु, व्याख्यायन्तेऽर्था यस्यां सा व्याख्या तस्यां व्याख्यायां प्रज्ञप्त्यां भगवत्यां 'ससमया' स्वसमयाः वियाजति' व्याख्यायन्ते-- सविस्तारं प्रतिपाद्यन्ते । परसमया व्याख्यायन्ते, स्वसमयपरसमया व्याख्यायन्ते । जीवा व्याख्यायन्ते, अजीवा व्याख्यायन्ते, जीवाजीवा व्याख्यायन्ते । लोको व्याख्यायते, अलोको व्याख्यायते, लोकालोको व्याख्यायते । 'वियाहेणं' व्याख्यायां भगवत्यां खलु 'छत्तीससहस्समशृणयाणं' षट्त्रिंशत्सहस्रान्यूनका. हे गौतमः व्याख्या प्रज्ञप्ति में (ससमथा वियाहिज्जति) स्वसमया व्याख्यायन्ते-स्वसमय का स्वरूप कहा गया है, (परसमया विहाहिज्जति) परसमयाः व्याख्यायन्ते-परसमय का स्वरूप कहा गया है, (ससमय-पर समया वियाहिज्जति) स्वसमय परसमयाः व्याख्यायन्ते-स्वसमय-परसमय दोनों का स्वरूप कहा गया है, (जीवा वियाहिज्जंति) जीवाः व्याख्यायन्ते-जीव का स्वरूप कहा गया है, (अजीवा वियाहिज्जंति)अजीवाः व्याख्यायन्ते-अजीव का स्वरूप कहा गया है, (जीवा जीवा विया हिज्जति) जीवा जीवा: व्याख्यायन्ते-जीव अजीव दोनों का स्वरूप कहा गया है, (लोगे वियाहिज्जइ) लोकः व्याख्यायन्ते लोक का स्वरूप समझाया गया है. (अलोगे वियाहिज्जइ) अलोकः व्याख्यायते-अलोक का स्वरूप समझाया गया है, (लोगालोगे वियाहिज्जइ) लोकालोको व्याख्यायतेलोक और अलोक का स्वरूप कहा गया है (वियाहे णं नाणाविह सुर. नरिंदरायरिसिविविहसंसइयपुच्छियाण) व्याख्यायां खलु नानाविध सुरहै गौतम ! व्याभ्यासतमा (स्वसमया वियाहिज्जति) स्वसमया व्याख्यायन्ते२१समयानु २१३५ ४हेवामा माव्यु छ, (परसमया वियाहिज्जंति) परसमयाः व्याख्यायन्ते-५२सभयानु २१३५ ४९ छ, ( ससमयपरसमया-वियाहिज्जति)
स्वसमयपरसमयाः व्यायन्ते-२५समयो भने ५२समयो मेमन्ननु २१३५ शायुछे, (जीवा वियाहिज्जति)जीवाः व्याख्यायन्ते-खानु २१३५ मतान्यु छ, (अजीवा वियाहिज्जति) अजीवा व्याख्यायन्ते-40ोनु ८१३५४ामा मा०युते. (जीवा जीवा वियाहिज्जति)जीवा जीवाः व्याख्यायन्ते-७१ मने म०७१, ये मन्नेनु २१३५ ४ामा मायु छे, (लागे वियाहिज्जइ) लोकः व्याख्यायन्ते-सानु २१३५ समपामा मान्छे, (अलोगे वियाहिज्ज इ) अलोकः व्याख्यायन्तेसोनु २१३५ समा०यु, (लोगालोगे वियाहिजइ)लोकालोकं व्याख्यायन्तेats मने मनु स्१३५ मताप्यु . (वियाये णं नाणाविहसुरनरिंद रायरिसिविविह-संसइयपुच्छियाणं) व्याख्यायां खलु नानाविधसुरनरेन्द्र
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર