Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायाङ्गसूत्रे वैडूर्यकाण्डं, चतुर्थ लोहिताक्षकाण्डम् । प्रत्येककाण्डं सहस्रसहस्रयोजनप्रमाणम् इति द्वितीयस्य वज्रकाण्डस्योपरितनाचरमान्तात् चतुर्थस्य लोहिताक्षकाण्डस्याधस्तनश्वरमान्तस्त्रिसहस्रयोजन दूरे वर्तते, इति सूत्रोक्तमन्तरं समञ्जसम् ।।सू. १५५॥ चतुःसहस्रतमं समवायमाह
मूलम्-तिििच्छकेसरि दहाणं चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साई आयामेणं पण्णत्ता ॥सू. १५६॥
टीका--'तिगिच्छि' इत्यादि-'तिगिच्छिकेसरिदहाणं' तिगिच्छिकेसरि हूदौ खलु निषधनीलबद्वर्षधरोपरिस्थितौ धृतिकीर्ति देवीनिवासस्थानभूतावेतौ हृदौ 'चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साई' 'चत्वारि चत्वारि योजनसहस्राणि-चतुःसहस्रचतुःसहस्रयोजनानि 'आयामेणं' आयामेन ‘पण्णत्ता' प्रज्ञप्तौ ॥सू. १५६॥ चतुर्थ का नाम लोहिताक्षकांड है। इनमें प्रत्येककांड एक एक हजार योजन प्रमाण का है। इस तरह द्वितीय वज्रकांड के ऊपर के अन्तिम भाग से चतुर्थ जो लोहिताक्षकांड हैं उस का नीचे का अन्तिम भाग तीन हजार योजन दूर पड जाता है ॥सू०१५५॥
अब सूत्रकार चार हजार ४००० वें समवाय का कथन करते हैं'तिगिच्छ केसरिदहाणं' इत्यादि ।
टीकार्थ-तिगिच्छ और केसरी ये दो हद कि जो क्रमशः निषध और नीलवंत पर्वतों पर स्विर हैं तथा जिनमें धृति और कीर्ति देवी रहती हैं चारचार हजार योजन के लंबे हैं। तिगिच्छ नामका जो हद है वह निषध पर्वत पर है और इसमें धृति देवी का निवास है। केसरी हूद नीलवंत पर्वत पर स्थित है और इसमें कीर्तिदेवी रहती है। इन दोनोंका विस्तार चार चार हजार योजन का है ॥ सू० १५६ ॥ કાંડનું નામ ખરકાંડ છે. બીજાનું નામ વાકાંડ છે. ત્રીજાનું નામ વૈડૂર્યકાંડ છે અને ચોથાનું નામ લેહિતાક્ષ કાંડ છે. તેમાં પ્રત્યેક કાંડ ૧૦૦૦-૧૦૦૦ એક હજાર એકહજાર યોજન પ્રમાણ છે. આ રીતે બીજા વાકાંડના ઉપરના અન્તિમ ભાગથી ચોથા હિતાક્ષ કાંડને નીચેને અતિમ ભાગ ૩૦૦૦ ત્રણ હજાર યોજના દૂર છે તે સ્પષ્ટ થાય છે. સૂિ. ૧૫પા
वे सूत्रधार या२ २ (४०००)नां समवाय मता छ--तिगिच्छ केसरिदहाणं' इत्यादि।
साथ-निष५ ५ ५२ मावति नामनु या १२(४०००) એજનના વિસ્તારવાળું છે, અને તેના પર ધૃતિ અને કીતિ દેવી વસે કેસરી
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર