________________
૬૮૨
समवायानसूत्रे निस्सारता और स्वमत की अखण्डनीयता को सम्यक प्रकार से प्रकट करने वाले (विविहवित्थराणुगमपरमसम्भावगुण विसिठ्ठा) विविध विस्तारानुगम परमसद्भावगुणविशिष्टा:-'विज्ञेय जीवादि पदार्थो का सुगमता से बोध हो -इस हेतु अनेक प्रकार से विस्तारपूर्वक जो वर्णन तथा 'इसपद का यही अर्थ है'-इस प्रकार से निश्चयपूर्वक जो व्याख्यान इन-दोनों गुणों से विशिष्ट, (मोक्खपहोयारगा) मोक्ष पथावतार कौ-मोक्षपथ में अर्थात सम्यग्दर्शनादि में प्राणियों के प्रवर्तक, (उयारा)उदारी-दोष-रहित और गुणसहित (अण्णाणतमंधधारदुग्गेसु दीवभूया) अज्ञानतमोन्धकारदुर्गेषु दीपभूतौ-अतिशय अज्ञानरूप अंधकार के वश दुर्गम तत्त्वमार्ग में प्रकाशक होने के कारण प्रदीपसदृश, (सिद्धिसुगइगिहुत्तमस्स सोवाणा चेव) सिद्धिसुगतिगृहोत्तमस्य सोपानानीव-सिद्धि, सुगति-मोक्षपदप्राप्ति अथवा सुदेवत्व
और समानुषत्व प्राप्तिरूप श्रेष्ठ प्रासाद के सोपान सदृश तथा (णिक्खोभणिप्पकंपा) निक्षोभनिष्प्रकम्पौ-वादियों द्वारा सर्वथा अखंडनीय ऐसे सूत्र और अर्थ इस अंग में कहे गये हैं।(सूयगडस्सणं परित्ता वायणा)सूत्रकृतस्य खलु परीता:वाचनाः-सूत्रकृतांगमें संख्यात बाचचनायें हैं,(संखेज्जा अणुयोगदारा) संख्याताःअनुयोगद्वाराणि-संख्यात अनुयोगद्वार हैं, (संखेज्जाओ पडिवत्तीओ) દ્વારા પરમતની નિઃસારતા અને રવમતની અખંડનીયતાને સારી રીતે દર્શાવનાર (विविहवित्थराणुगगपरमसम्भावगुणविसिट्टा) विविधविस्तारानुगमपरमसद्भवगुणविशिष्टाः-विज्ञेय ७६ पहानु सुगमनायी ज्ञान थाय" એ હેતુથી વિસ્તારપૂર્વક અનેક પ્રકારે વર્ણનયુકત તથા “આ પદનો આ પ્રમાણે 24 थाय छ.” मे प्रमाणे निश्चयपू ना ४थनयु४त, (मोक्ख पहोयारगा) मोक्ष पथावतारको-भाक्षने ५थे अथवा सन्याशन माहिमा वने प्रवृत्त ४२नार उयारा) उदारौ-दोषरहित अने गुरासहित (अण्णाणंतमंधयारदुग्गेसु दीवभूया अज्ञानतमोन्धकारदुर्गेषु दीपभूतौ-मतिशय २मज्ञान३५ २५४२मय हुभ तरमा मा ४४ पाथी दीपना समान, सिद्धिसुगइ गिहुत्तमस्स सोवाणा चेवः सिद्धिसुगति गृहोत्तमस्य सोपानानोव-सिद्धि, सुगति-भाक्षनी प्रति, અથવા સુદેવત્વ અને સુમાનુષત્વ પ્રાપ્તરૂપ શ્રેષ્ઠ પ્રાદિનાં પગથિયાં સમાન તથા (णिक्खोभणिप्पकंपा ) निक्षोभनिष्पकम्पो-५२मतवाहीन्या द्वारा स! AA3नीय सेवा सूत्र भने मनु ॥ सूत्रतinwi Yथन यु छ. (सूयगडस्सणं परित्तावायणा) सूत्रकृतस्य खलु परीताः वाचना:-सूत्रतामा सभ्यात पायना मो छ, (संखेज्जा अणुयोगदारा) संख्याताः अनुयोग द्वाराणि-सध्यात अनुये।।
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર