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भावबोधिनी टीका. सूत्रकृतास्वरूपनिरूपणम् स्वभावेश्वरात्मनां षण्णां प्रत्येकेन सह योगे द्वादशद्वादश विधः। सर्वसंकलनया चतुरशीतिविधा अक्रियाः। योगस्वरूपमेवमवगन्तव्यम्-'नास्ति जीवः स्वतः कालतः, नास्ति जीवः परतः कालतः, नास्ति जीवः स्वतो यदृच्छातः, नास्ति जीवः परतो यहच्छातः, एवं नियतिस्वभावेश्वरात्मनामपि योगो बोध्यः, इति जीवपदार्थेन सह द्वादश भेदाः। एवमजीवादि प्रत्येकपदार्थेन सहापि द्वादश द्वादश भेदा इति सर्वसंकलनया चतुरशीति भेदा विज्ञेयाः? तथा 'सत्तट्ठीए' नहीं किया जाता है। किन्तु स्व और पर तथा काल आदि की अपेक्षा लेकर जीवादिक ७ सात पदार्थो की अक्रिया का विचार किया गया है। ईस तरह जीवादिक ७सात पदार्थो में से प्रत्येक पदार्थ काल नियति आदि ६छह में से प्रत्येक के साथ योग करने पर १२-१२ बार-बार प्रकार का हो जाता है जैसे-(१) नास्ति जीवः स्वतः कालतः, (२) नास्ति जीवः परतः कालतः, (३) नास्ति जीवः स्वतो यदृच्छातः, (४) नास्ति जीवः परतः यदृच्छातः-जीव न स्व की अपेक्षा से है और न काल की अपेक्षा से है, जीव न पर की अपेक्षा से है और न काल की अपेक्षा से है। जीव न स्व की अपेक्षा से है और न यदृच्छा की अपेक्षा से है। जीवन पर की अपेक्षा से है और यदृच्छा की अपेक्षा से है। इस तरह स्व और पर को लेकर काल, यहच्छा आदि ६ के साथ विचार करने पर २-२ दो-दो भेद हो जाने से इन काल आदि की अपेक्षा जीवादि प्रत्येक पदार्थ के १२--१२ वारह-बारह भेद निकल आते हैं। अतः ७-१२-८४ भेद अक्रियो के हो जाते हैं। इन अक्रियाओं को अक्रियावादी मानते हैं इसलिये वे નથી. પણ સ્વ અને પર તથા કાળ આદિની-અપેક્ષાએ જીવાદિક છસાત પદાર્થોની અક્રિયાને વિચાર કરાયો છે. આ રીતે જીવાદિક સાત પદાર્થમાંના પ્રત્યેક પદાર્થનો કાળ, નિયતિ આદિ ૬માંના પ્રત્યેકની સાથે ભેગા કરવાથી જોડવાથી ૧૨-૧૨ બારमा२ प्रा२ना थाय भ3-(१) नास्ति जीवः स्वतः कालतः-७१ २५नी अपे. क्षा नथी मने जनी पेक्षा ५५ नथी (२)नास्ति जीवः परतः कालत:७१ ५२नी अपेक्षा नथी मने अनी अपेक्षाये ५५ नथी (3)नास्ति जीवः स्वतो यदृच्छातः-१ स्वनी अपेक्षा नथी भने ५४२छानी अपेक्षा ५९१ नथी (४) नास्ति जीवः परतः यदृच्छातः-७१ ५२नी अपेक्षा नथी भने यछानी मथे. ક્ષાએ પણ નથી. એ જ પ્રમાણે સ્વ અને પરની સાથે કાળ, યદછા આદિ ૬ની સાથે વિચાર કરતાં ૨-૨ બે-બે ભેદ પડવાથી એ કાળ આદિની અપેક્ષાએ જીવાદિ પ્રત્યેક પદાર્થના ૧૨-૧૨ ભેદ પડી જાય છે. તેથી અક્રિયાના ૭ ૧૨ = ૮૪ ચોર્યાસી ભેદ થાય છે. એ અક્રિયાઓને અક્રિયાવાદીઓ માને છે તેથી તેમને અકિયાવાદી કહે
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર