Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायाङ्गसूत्रे असुरकुमाराणां देवानामस्त्ये केषां सप्तदशपल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता । सौधर्मशानेषु कल्पेषु अस्त्ये केषां देवानां सप्तदशपल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। महाशुक्रे कल्पे देवानामुत्कर्षेण सप्तदशसागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता । सह. सारे कल्पे देवानां जघन्येन सप्तदशसागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। ये देवाः सामानं१, सुसामानं २, महासामानं३, पद्म४, महाप ५, कुमुदं६, महा. कुमुदं७, नलिनं८, महान लिनं९, पौण्डरीकं१०, महापौण्डरीकं११, शुक्लं१२, महाशुक्लं १३, सिहं १४, सिंहकान्तं१५, सिंहबीज१६, भावितं१७ च विमानम् । एतेषु सप्तदविमानेषु देवत्वेनोत्पन्नाः, तेषां खलु देवानामुत्कर्षेण सप्तदश सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता । ते खलु देवाः सप्तदशभिरर्द्धमासैरानन्ति वा प्राणन्ति वा उच्छश्वसन्ति वा निश्वःसन्ति वा। तेषां खलु देवानां सप्तदशदेवों में कित्तनेक देवों की स्थिति सतरह पल्योपम की कही गई है। सौधर्म और ईशान, इन दो कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति सत. रह पल्योपम की कही गई है। महाशुक्र कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति सतरह सागरोपम की कही गई है। सहस्रार कल्प में देवों की जघन्यस्थिति सतरह सागरोपम की कही गई है। जो देव सामान १, सुसामान२, महासामान३, पद्म४, महापद्म५, कुमुद६, महाकुमुद७, नलिन८' महानलिन९, पौडरीक१०, महापौंडरीक ११, शुक्ल१२, महाशुक्ल १३, सिंह १४, सिंहकान्त १५, सिंहबीज१६, और भावित १७, इन १७ विमानों में देवकी पर्याय से उत्पन्न होते हैं उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति सतरह सागरोपम की कही गई है । वे देव सतरह अर्द्धमासों के बाद बाह्य आभ्यंतरिक श्वासोच्छास ग्रहण करते हैं। उन देवो को सतरह हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर आहा. रसंज्ञा उत्पन्न होती है। इन देवों में कितनेक देव ऐसे भी होते हैं जो છે. અસુરકુમાર દેવોમાં કેટલાક દેવની સ્થિતિ સત્તર પપમની કહી છે. સોધર્મ અને ઇશાન, એ બે કલપમાં કેટલાક દેવની સ્થિતિ સત્તર પલ્યોપમની બતાવી છે. મહાશુક્ર કલ્પમાં દેવાની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ સત્તર સાગરોપમની કહી છે. સહસ્ત્રા૨ કપમાં हेवानी धन्य स्थिति सत्तर साप।५मनी डी जे. रे हेवे। (१) सामान, (२) सुसाभान, (3) भासामान, (४) ५, (५) महाप, (६) हुभु, (७) भामुह, (८) नलिन (4) महानसिन, (१०) पौरी, (11) महापी २ि४ (१२) शुस (13) महाशुस, [१४] सिड, (14) सिआन्त, (१६) सिमी, मन (१७) लावित, ये सत्तर વિમાનોમાં દેવની પર્યાયે ઉત્પન્ન થાય છે, તે દવાની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ સત્તર સાગરો૫મની કહી છે. તે દેવને સત્તર અધે માસ ૮ માસ-બાદ બાહ્ય અભ્યન્તરિક શ્વાસોચ્છવાસ ગ્રહણ કરે છે. તે દેને સત્તર હજાર વર્ષે વ્યતીત થયા પછી આહાર સંજ્ઞા ઉત્પન્ન થાય છે. તે દેવોમાં કેટલાક દે એવા પણ હોય છે કે જે
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર