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समवायानसूत्रे
पश्चरणम्।।७॥ 'अलोभे य८, अलोभश्च लोभवर्जनम्।८॥ 'तितिक्रवा९' तितिक्षापरोपहोपसर्गसहनम्॥९॥ 'अन्ज ते १०' आर्जवम्=सारल्यम्।१०॥ 'सुई१२' शुचिः अन्तः-करणशुद्धिः।११॥ समदिट्ठी' सम्यग्दष्टिः सम्यग्दर्शनशुद्धिः ॥१॥ 'समाही१३' समाधिः चित्तस्वास्थ्यम् १३, 'आयारे१४, विणयोवए१५' आचार विनयोपगतः अचारोपगतो मायां न कुर्यात् १४, विनयोपगतो मानं न कुर्यात १५. इत्यर्थः। धृतिमितिश्च संवेगः प्रणिधिः सुविधिः संवरः। आत्मदोषोपसंहार: सर्वकामविरक्तता॥३॥ 'धिईमई१६' धृतिमतिः धृतिर्थैर्य मुख्या यत्र एतादृशीमतिः धृतिमतिः अदीनतेत्यर्थ:१६. संवेगे१७' संवेगः भववैराग्य, मोक्षाभिलाषो वा१७, 'पणिही१८' प्रणिधिः-मायाशल्यरहितत्वम् १८, 'सुविहि१९' सुविधि:सदनुठानम् १९, 'संवरे२०' संबर: आस्रवनिरोधः२०, 'अत्तदोसोवसंहारे' आत्मदोषो. पसंहार स्वदोषपरित्यागः२१, 'सव्वकामविरत्तया' सर्वकामविरक्तता-सकलवि. गुप्तरूप से तपस्या करना इसका नाम अज्ञानता है। लोभ का परित्याग करना सो अलोम है८। परीषह और उपसर्ग सहन करना सो तितिक्षा है९। परिणामों में सरलता का होना सो आर्जव है१०। अन्तःकरण की शुद्धि रखना इसका नाम शुचि है११। सम्यद्गर्शन की शुद्धि का नाम सम्यग्दृष्टि है१२। चित्त की स्वस्थता का नाम समाधि है १३। माया नहीं करना इसका नाम आचारोपगत है १४।मान नहीं करना इसका नाम विनयोगत है१५। धैर्यप्रधान मति का होना अर्थात् दीनता से रहित होना इसका नाम प्रतिमति है १६। संसार से वैराग्य होना अथवा मोक्ष की अभिलाषा रखना इसका नाम संवेग है१७ मायाशल्य से रहित होना इसका नाम प्रणिधि है १८। अच्छे अनुष्ठान का करना इसका नाम सुविधि है१९। आस्रव का निरोध होना संवर है २०। अपने दोषों 'अशानता' छे. (८) सामना परित्या ४२ मम' ५५ 4 छे. (८) ५५ અને ઉપસર્ગ સહન કરવા તેનું નામ તિતિક્ષા છે (૧૦) પરિણામમાં સરળતા હોય तेनु मानव' . (११) मत:४२पने शुद्ध २५ तेनु नाम 'शुथि(१२) सभ्य ગૂદર્શનની શુદ્ધિને સમ્યગૃષ્ટિ કહે છે. (૧૩) ચિત્તની સ્વસ્થતાને “સમાધિ કહે છે. (१४) भायो न ४२वी ते नाम 'मायारोपात' छे. (१५) भान न २युं तेनु नाम વિનોગત” છે. (૧૬) ધૈર્યપ્રધાન મતિનું હોવું એટલે કે દીનતાથી રહિત હોવું તેને “ધતિમતિ કહે છે. (૧૭) સંસાર પ્રત્યે વૈરાગ્યભાવ થે અથવા મોક્ષની અભિલાષા રાખવી તેનું નામ “સંવેગ” છે. ૧૮)માયાશલ્યથી રહિત બનવું તેને “પ્રણિધિ ४९ छ.(१८)सा मनु 81। ४२१॥ तेनु नाम 'सुविधि' छ.(२०) मालपना नि३१५
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર