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प्रबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.८ रूपी अजीव प्रज्ञापना
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कर्कश स्पर्शपरिणता अपि१, मृदुकस्पर्शपरिणता अपि२; गुरुकस्पर्शपरिणता अपि३, लघुकस्पर्शपरिणता अपि४, शीतस्पर्शपरिणता अपि५, उष्णस्पर्शपरिपाता अपि६ । संस्थानतः परिमण्डलसंस्थानपरिणता अपि १, वृत्तसंस्थानपरिणता अपि२, त्र्यस्रसंस्थानपरिणता अपि ३, चतुरस्रसंस्थानपरिणता अपि४, आयतसंस्थानपरिणता अपि |५|२३|| १८४ ॥ ०८ ||
टीका-अथ स्पर्शस्य वर्णादिभिः सह (१८४) चतुरशीत्यधिकशतविकल्पान् प्रतिपादयितुमाह - ' जे फासओ कक्खडफासपरिणया ते वण्णओ कालवण्णपरिया वि, ( महररसपरिणया वि) मधुर रसवाले भी हैं ।
(फासओ) स्पर्श से (कक्खडफासपरिणया वि) कर्कश स्पर्शवाले भी हैं (मालपरिणया वि) मृदु स्पर्शवाले भी हैं (गरुयफासपरिया वि) गुरु स्पर्शवाले भी हैं ( लहुयफासपरिणया वि) लघु स्पर्श - वाले भी हैं ( सीयफासपरिणया वि) शीत स्पर्शवाले भी हैं (उसिणफासपरिणया वि) उष्ण स्पर्शवाले भी हैं ।
(संघाणओ) संस्थान से ( परिमंडलसंठाणपरिणया वि) परिमंडल संस्थानवाले भी हैं ( हसं ठाणपरिणया वि) वृत्त संस्थानवाले भी हैं (तंसठाणपरिणया वि) त्रिकोण संस्थानवाले भी हैं (चउरंस संठाणपरिणया वि) चौरस संस्थानवाले भी हैं (आययसंठाणपरिणया वि) आयत संस्थानवाले भी हैं सू०॥८॥
टीकार्थ - अब स्पर्श का वर्ण आदि के साथ योग करने पर जो एक सौ चौरासी (१८४) भेद होते हैं, उन्हें दिखलाते हैं- जो पुद्गल મધુર રસવાળા પણ છે.
(फासओ) स्पर्शथी (कक्खडफासपरिणया वि) ४४श स्पर्श वाणां पशु छे (मउयफ सपरिणय। वि) मृदु स्पर्श परिणाम वाणां या छे (गरुयफासपरिणया वि) गु३ स्पर्श परिणाम वाणां पशु छे ( लहुयकासपरिणया वि) | स्पर्श वाणां छे. (सीयफासपरिणया वि) शीत स्पर्श वाणां पशु छे. (उसिणफास परिणया वि) उष्णु स्पर्श वाणां पशु है.
(संठाणओ) संस्थानथी (परिमंडलसं ठाणपरिणया वि) परिभउस संस्थानयरिएवाभवाना पशुछे (बट्टसंठाणपरिणया वि) वृत्तसंस्थान वाणां पशु छे (तंससंठाणपरिया वि) त्रिषु संस्थानवानां पशु छे (चउरंस संठाणपरिणया वि) येोरस संस्थान वाणां पशु छे (आययसंठाणपरिणया वि) यायत संस्थानवानां पशु छे. ॥ सू. ८ ॥ હવે સ્પર્શીને વર્ણ વિગેરેની સાક્ષે જોડવાથી જે એક સે ચેારાસી (१८४) लतना लेहो थाय छे - ते हेमाडे छे.
ટીકા