Book Title: Pragnapanasutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 946
________________ ९८६ raterres असङ्गाच संसारविप्रमुक्ताः प्रदेश निर्वृत्त संस्थानाः कुत्र प्रतिहताः सिद्धाः ? कुत्र 'सिद्धाः प्रतिष्ठिताः, कुत्र बोन्दि च्युत्वा खलु क्व गला सिध्यन्ति ? अलोके प्रतिहताः सिद्धाः, लोकाग्रे च प्रतिष्ठिताः, इह बोन्दि च्युत्वा खलु तत्र गत्वा सिध्यन्ति ||११|| दीर्घं वा, हस्वं वा, यत् चरमभवे भवेत् संस्थानम् । ततस्त्रिभाग हीना: सिद्धावगाहना भणिता || १५२ || यत् संस्थानं तु एतद्-भवं व्यवनञ्चरमसमये । आसीत् च प्रदेशघनं तत् संस्थानं तत्र तस्य ॥ १५३ ॥ त्रीणि गर्भवास रूप वसति तथा प्रपंच से अतिक्राना (सासयमणागयद्धं कालं चिति) शाश्वत भविष्यत् काल तक रहते हैं (तत्थ वि) वहां भी (ग) और (ते) वे (अवेया) वेद रहित (अवेधणा) वेदना रहित (निम्ममा) ममत्व रहित (असंगा य) पर-पदार्थ के संयोग से रहित ( संसारविप्पमुक्का) संसार से सर्वथा मुक्त (पएसनिव्वत्तसंाणा) आत्म प्रदेशों से बने हुए आकार वाले - ( कहिं पहिया सिद्धा) सिद्ध कहाँ रुक जाते हैं ? ( कहिं सिद्धा 'पइडिया) सिद्ध कहां प्रतिष्ठित है ? ( कहिं यदि चहत्ताणं) कहां शरीर को 'स्याग कर ( कत्थ गंतॄण सिज्झह ?) कहां जाकर सिद्ध होते हैं ॥ १५० ॥ (अलोए पडिहा सिद्धा) अलोक से सिद्ध रुक जाते हैं (लोयग्गे पट्टिया) लोक के अग्रभाग में प्रतिष्ठित होते हैं (इहं बोदि चाणं) यहां शरीर को त्याग कर (तत्थ गंतॄण सिज्झइ) वहाँ जाकर सिद्ध होते हैं ॥ १५१ ॥ (दीहं वा ) दीर्घ अथवा (हस्सं) हस्व (जं) जो (चरिमभवे) अंतिम भव में (हविज्ज) हो (संटाणं) आकार (तत्तो) उससे (तिभागहीणा) शाश्वत, भविष्यत् अस सुधि रहे हे (तत्थ वि) त्यां पशु (य) मने (ते) तेथे। ' (अवेया) वेह रहित (अवेयणा) वेहना रहित (निम्ममा ) भभत्व रहित (असंगाय) परपहार्थना सयोगथी रहित ( संसारविमुक्का ) संसारथी सर्वथा भुक्त (पएस निव्वत्तमठाणा) आत्म प्रदेशोथी गनेसा आवाजा ( कहिं पहिया सिद्धा) सिद्ध यां अई लय छे ? ( कहिं सिद्धा पइट्ठिया) सिद्ध या प्रतिष्ठित छे ? ( कहिं बोंदि चइत्ताण) यां शरीरनो त्याग पुरीने ( कत्थ गंतृण सिज्झइ ) यांने सिद्ध थाय ॥ f १५० ॥ (अलोए पsिहया सिद्धा) असोथी सिद्धं पइट्ठिया) सोना अथ लागभां प्रतिष्ठित थाय छे 'शरीरनो परित्याग श्रीने (तत्थ गंतूण सिज्झइ ) त्यां (दीहवा) दीर्घ (हस्सं) स्व (जं) ने डाय (सठाण) भाार (तत्तो) तेनाथी रोध लय छे (लोयग्गे य (इहं बोंदि चत्ताणं) अडि ने सिद्ध थाय छे ॥ १५१ ॥ (चरिमभवे) अंतिम लवभां (हविज्ज) (तिभागहीणा) त्रीन लागथी छा 2

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