Book Title: Pragnapanasutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 947
________________ प्रमेययोधिनी टीका द्वि. पद २ सू २९ सिद्वानां स्थानादिकम् ९८७ शतानि त्रय स्त्रिंशानि धनुविभागः खलु भवति ज्ञातव्यः । एपा खलु सिद्धानाम् उत्कृष्टावगाहना भणिता ॥१५४॥ चतस्त्रश्च रत्नयः रत्निस्त्रिभागोना च बोद्धव्या। एपा खलु सिद्धानां मध्यमावगाहना भणिता ॥१५॥ एका च भवति तीसरा भाग कम (सिद्वाण) सिद्धों की (ओगाहणा) अवगाहना (भणिया) कही गई है ॥१५२॥ - (जं संठाणं) जो संस्थान (तु इहं भयं चयंतस्स) इस सच को त्यागते हुए का (चरिससमयंमि) अन्तिम समय में (आसी य) था (पदेसंघर्ण) प्रदेशों से सम्पन (तं) वह (संटाण) संस्थान (ताहिँ) वहां (तस्स) उसका ॥१५३॥ · , (तिन्नि सया) तीन सौ (तित्तीसा) तेतीस (घणुत्तिभोगो य) एक धनुष का तीसरा भाग (होइ) होती है (नायव्यो) जानना चाहिए (ऐसा) यह (खल) निश्चय से (सिद्वाणं) सिद्धों की (उकोसोगाहणा) उत्कृष्ट अवगाहना (भणिया) कही है ॥१५४॥ (चत्तारि य रयणीओ) चार हाथ (रयणीतिमाशूणिया य चोद्धव्या) त्रिभाग कम एक हाथ जानना चाहिए (एसा) यह (खल) निश्चय (सिद्धाणं) सिद्धों की (मज्झिम ओगाहणा) मध्यम अवगाहना (भणिया) कही है ॥१५॥ ' (एगा य होइ रयणी अटेव य अंगुलाई साहिया) एक हाथ और आठ अंगुल सहित (एसा खल सिद्धाणं) यह निश्चय से सिद्धों की (सिद्वाणं) सिद्धोनी (ओगाहणा) PAना (भणिया) ४ी छे ॥ १५२ ॥ (जं संठाणं) २ सथानथी (तु इहं भवं चयंतस्स) मा अपने त्यागनाराना (चरिमसमयंमि) गन्तिम समयमा (आसीय) उता (पदेसघणं) प्रशाथी सघन (तं) ते (संठाणं) सस्थान (तहिं) त्यां (तस्स) तेना ॥ १५3 ॥ , (तिन्नि सया) र सो (तित्तीसा) तेत्रीस (धणुत्तिभागो य) २ धनुषना श्री मा (होइ) साय छ (नायब्बो) नगु नये (एसा) २ (खलु) निश्चयथा (सिद्धाणं) सिद्वान (उकोसोगाहणा) दृष्ट माना (भणिया) ४डी छे ॥१५४॥ (चत्तारि य रयणीओ) यार ।थ (रयणी तिभागूणिया य बोद्धव्या) " मा सोछ। ४ । शुवा नये (एसा) मा (खलु) निश्चय (सिद्धाणं) सिद्धोनी (मज्झिम ओगाहणा) मध्यम माना (भणिया) ४ीछे ॥ १५५ ॥ (एगाय होइ रयणी अद्वेव य अंगुलाई साहिया) से ७१५ मन मा8 मशुस सहित (एसा खलु सिद्धाणं) २मा निश्चयथी सिद्धानी (जहन्न ओगाहणा भणिया) चन्य अ नाडी छे ॥ १५६ ॥

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