Book Title: Pragnapanasutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 945
________________ २८५ प्रमेयवोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२९ सिद्धानां स्थानादिकम् निष्कङ्कटच्छाया सप्रभा सश्रीका सोद्योता प्रासादीया दर्शनीया, अभिरूपा, प्रतिरूपा, ईपत्प्रारभारायाः खलु पृथिव्याः निःश्रेणिगत्या योजने लोकान्तः तस्य खलु योजनस्य यत् तत् उपरिमं गन्यूतम् तस्य खलु गव्यूतस्य योऽसौ उपरिमः पड्भागे, अत्र खलु सिद्धाः भगवन्तः सादिकाः अपर्यवसिताः, अनेक जाति जरामरणयोनिसंसारकलङ्कलीभाव पुनर्भव गर्भवासवसति प्रपञ्चसमतिक्रान्ताः शाश्वतम् अनागतं कालं तिष्ठन्ति, तत्रापि च ते अवेदाः अवेदनाः निर्ममाः, कोमल (घट्टा) दृष्ट-घिसी हुई-सी (मट्ठा) पृष्ट (नीरया) रज से रहित (निम्मला) निर्मल (निप्पंका) पंक रहित (निक्कंकडच्छाया) निष्कवच कान्ति वाली (सप्पभा) प्रभायुक्त (सस्सिरीया) श्रीसम्पन्न (सउज्जोया) प्रकाशमय (पासाईया) प्रसन्नताप्रद (दरिसणिला) दर्शनीय (अभिरूवा) अभिरूप-सुन्दर (पडिरूवा) सर्वांग सुन्दर रूप वाली (इसीपन्भाराए णं पुढवीए) ईषत्प्राग्भार पृथिवी से (सीआए) निश्रेणी गति से (जोयणम्मि) एक योजन पर (लोगंतो) लोक का अन्त है (तस्स गं जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए) उल योजन का जो ऊपरी गव्यूति है (तस्त णं गाउअस्स जे से उवरिल्ले छठभागे) उस गव्यति का जो ऊपरी छठा भाग है (एत्थ णं) यहां (सिद्धा भगवंतो) सिद्ध भगवान् (साइया अपज वसिया) सादि अनन्त (अणेगजाइ-जरामरण-जोणिसंसार-कलंकलीभाव - पुणभव- गम्भवासवसहीपवंचसमइक्कंता) अनेक जन्म, जरा, मरण, योनिगमन, वाधा, पुनर्भव, २१२७ (सण्हा) [Axeणी (लण्हा) मन (घट्ठा) पृष्ट-घसेदासजी (मट्ठा) भृष्ट (नीरया) २०१२हित (निम्मला) निम (निपंका) ५४२डित (निकंकडच्छाया) निय न्ति (सप्पभा) प्रमायुत (सस्सीरीया) श्रीसपन्न (सउज्जोया) समय (पासाईया) प्रसन्ताह (दरिसणिज्जा) शनीय (अभिरुवा) मनि३५ सु४२ (पडिरूवा) साग सु२ सु४२ ३५वाणी । (इसीपभाराएणं पुढवीए) ४पत्प्रामा२ पृथ्वीथी (सीआए) निजि गतिथी (जोयणम्मि) ४ योनि ५२ (लोगंतो) सोने सन्त छ (तस्सणं जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए) ते योनन २ १५२नी यति छ (तस्सणं गाउ अस्स जे से उवरिल्ले छठभागे) ते न्यूतिनारे ५२ने। छट्टो मा छे (एत्थ ण) मा (सिद्धाभगवंतो) सिद्ध भगवान (साइया अपज्जवसिया) साह मनात (अणेगजाइ-जरा-मरण-जोणि-संसार कलंकलीभावपुणभव-गम्भवासवसही पवंचसमइक्कंता) भने म, १२, भ२९], योनिगमन, था, पुनमय, • पास ३५ पति नया अपयथी मdिzia (सासयमणागयद्वं काल चिटुंति) ० १२४

Loading...

Page Navigation
1 ... 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975