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प्रशापनासी राशिः सर्वाद्धापिण्डितो यदि भवेत् । सोऽनन्तवर्गभक्तः सर्वाकाशे न मांति ॥१६४॥ यथा नाम कश्चित् म्लेच्छो नगरगुणान् बहुविधान् विजानन् । न शक्नोति परिकथयितुम् उपमायां तत्रा सत्याम् ॥१६५॥ इदं सिद्धानां सौख्यम् अनुपमम् नाति तस्यौपम्यम् । किञ्चिद् विशेषेण इतः सादृश्यमिदं शृणुत वक्ष्यमाणम् ॥१६६।। यथा सर्वकामगुणितं पुरुषो भुक्त्वा भोजनं कोऽपि । वृक्षुद्
(सिद्धस्स) सिद्ध जीव के (सुहोरासी) सुख की राशि (सव्वद्धापिंडिओ जइ हवेज्जा) सर्वकाल से पिण्डत यदि हो (सोऽणंतवग्गभइओ) वह अनन्त वर्गों से भाजित होकर (सव्वागासे) समस्त आकाश में (न माइज्जा) नहीं समावे ॥१६॥ . (जह णाम कोई मिच्छो) जैसे कोई म्लेच्छ (नगरगुणे बहुविहे) घहुत प्रकार के नगर के गुणों को (वियागंतो) जानता हुआ (न चएइ (परिकहेउं) कहने को समर्थ नहीं होता (उवमाए) उपमा से (तहिं) वहां (असंतीए) असत् होने से ॥१६५॥
(इय सिद्धाणं सोक्ष) इसी प्रकार सिद्धों का सुख (अणोवर्म) अनुपम है (नत्थि तस्ल ओवम्म) उसकी उपमो नहीं (किंचि) कुछ (विसेसेणित्तो) विशेषता से इसकी (सारिक्खमिणं सुणहवोच्छं) यह समानता मैं कहूंगा, उसे सुनो ॥१६६॥
(जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोइ) जैसे कोर पुरुष सर्वकामगुणित भोजन को खाकर (तण्हाछुहाविमुक्को (प्यास -भूख से रहित होकर (अच्छिज्ज जहा अमियतित्तो) ठहरे जैसे
___ (सिद्धस्स) सिद्ध सपना (सुहोरासी) सुगनी राशि (सबद्धा पिंडिओ जइ हवेज्जा) साथी ने 431 डाय (सोऽणंतवग्गभइओ) ते मनन्त वर्गाथा मानित धन (सव्वगासे) समस्त मामा (नमाइज्जा) समाशे नहि ॥ १६४ ॥
(जह णाम कोई मिच्छो) २ ४ २७ (नगरगुणे बहुविहे) ! ५l२ना नाना गुणन (वियाणंतो) तपा छता (न चएइ परिकहेउ) उपाने समर्थ नथी थतो (उपमाए) ७५माथा (तहिं) त्यां (असंतीए) मसात् छापाथी ॥ १६५ ॥
(इय सिद्धाणं सोक्ख) २ रीते सिद्धाना सुप (अणोवमं) अनुपम छ (नस्थि तस्स ओवम्म) तेनी उपभानथी (किंचि) ४४४ (विसेसेणित्तो) विशेषता थी मेनी (सारिक्खमिणं सुणहवोच्छं) 241 समानता डिश, ते समो ॥ १६६ ।
(जह सव्वकामगुणियपुरिसो भोत्तण भायणं कोइ) म ५३५ सर्प ४म शुणित सामनने भान (तण्हा छुहा विमुक्को) सुप तरस पगरने। धन (अच्छिज्ज जहा अमियतित्तो) ४ाभ भभूतथा तृत थाय ॥ ११७ ॥