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प्रबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२६ ईशानादिदेवस्थानानि
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कटकत्रुटितस्तम्भितभुजः, अङ्गदकुण्डलसृष्टगण्डस्तलकर्णपीठधरी, विचित्रहस्ताभरणः, विचित्रमाल्यानुलेपनधरः, भास्वरयोन्दिः, कल्याणकप्रवरवस्त्र परिहितः कल्याण प्रवरमाल्यानुलेपनः, प्रलम्बवनमालाधरः दिव्येन वर्णगन्धादिना दशदिश उद्योतयन् प्रभासयन् 'से णं तत्थ' स खलु - ईशानो देवेन्द्रो देवराजस्तत्र उपर्युक्तस्थाने 'अट्ठावीसाए विमाणावास सयस हस्ताणं' अष्टाविंशतेः विमावासशतसहस्राणाम् 'असीईए सामाणियसाहस्सीणं' अशीतेः सामानिकसाहस्रीणाम् 'तायत्तीसाए तायत्ती सगाणं' त्रयस्त्रिंशन वायस्त्रिंशकानाम् 'चउण्डं लोगपालाणं' चतुणी लोकपालानाम् ' अहं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं' अष्टानाम् अग्रमहिषीणाम्, सपरिवाराणं, 'तिन्हं परिसाणं' तिसृणां पर्पदाम् 'सत्तण् अपने-अपने सहस्रों आत्मरक्षकों का, तथा अन्य बहुसंख्यक ईशान कल्पवासी वैमानिक देवों और देवियों का अधिपतित्व, अग्रेसरत्व, स्वामित्व, भर्तृत्व, महत्तरकत्व, आज्ञा - ईश्वर सेनापतित्व करते हुए तथा उनका पालन करते हुए, नाटक, गीत एवं कुशल वादकों द्वारा वादित वीणा, तल, ताल, त्रुटित, मृदंग आदि वाद्यो की निरन्तर होने वाली ध्वनि के साथ भोगयोग्य भोगोपभोग भोगते हुए रहते हैं ।
ईशान कल्प में ईशान नामक देवेन्द्र, देवराज निवास करता । उसके हाथ में त्रिशूल रहता है । वह वृषभवाहन अर्थात् बैल पर सवारी करता है और उत्तरार्ध लोक का अधिपति है । वह अट्टाईस लाख विमानों का स्वामी है । रजरहित अम्बर के समान वस्त्रों को धारण करता है । उसका शेष वर्णन शक्रेन्द्र के समान समझ लेना चाहिए। यावत्-वह आलग्न ( लटकती हुए) माला और मुकुद का धारक है । उसके कुण्डल इतने स्वच्छ होते हैं जानो नूतन स्वर्ण के बने हों और वे सुन्दर, चित्र-विचित्र तथा चंचल होते हैं । उनके
દેવીયાના અધિપતિત્ત્વ, અગ્રેસરત્વ, સ્વામિત્વ, ભતૃત્વ મહત્તરકત્વ, આજ્ઞા ઇશ્વર સેનાપતિત્વ કરતા રહિને તથા તેનું પાલન કરતા કરતા નાટક, ગીત, તેમજ કુશલ वाह द्वारा वाहित वीला, तस, तास, त्रुटित, मृद्ध आदि वाद्योना निरन्तर થતા ધ્વનિની સાથે ભાગ યાગ્ય ભાગેાપભાગ ભાગવતા રહે છે.
ઈશાન કલ્પમાં ઇશાન નામક દેવેન્દ્ર દેવરાજ, નિવાસ કરે છે તેમના હાથમા ત્રિશૂલ રહે છે. તે વૃષભવાહન અર્થાત્ ખળદ ઉપર સવારી કરે છે અને ઉત્તરા લાકના અધિપતિ છે. તે અઠયાવીસ લાખ વિમાનાના સ્વામી છે. રજરહિત અમ્મર સરખા ઉત્તમ વસ્ત્રોને મારણ કરે છે. તેમનુ બાકીનું વન શક્રેન્દ્રના વન સમાન સમજી લેવુ જોઇએ, યાવત્ તે આલગ્ન લટકતી એવી માલા અને મુગટના ધારક છે, તેમના કુંડળ એટલાં સ્વચ્છ હાય છે કે જાણે