Book Title: Pragnapanasutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 925
________________ प्रमैयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सु.२८ अवेयकदेवानां स्थानानि ६६५ चीनायता यथा अधस्तनौवेयकाणाम्, नवरम् सप्तोत्तरं विमानावासशतं भवति, इत्याख्यातं, तानि खलु विमानानि यावत् प्रतिरूपाणि, अत्र खलु मध्यसप्रैवेयकाणाम् यावत् त्रिप्वपि लोकस्य असंख्येयभागे तन खलु वहवो मध्यमवेयका देवाः परिवसन्ति, यावत् अहमिन्द्रा नाम ते देवगणाः प्रज्ञप्ताः श्रमणायुष्मन् ! कुत्र खलु भदन्त ! उपरिसद्मवेयकाणां देवानां पर्याप्तापर्याप्तानाम्, स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? कुत्र खलु भदन्त ! उपरिमौवेयकवाः परिवसन्ति ? गौतम ! मध्यमौवेयकाग्रैवेयकों के तीन (पत्थडा) पाथडे (पण्णत्ता) कहे हैं (पाईणपडीणायया) पूर्व-पश्चिम में लम्बे (जहा हेटिनगेविज्जगाणं) अधरतन धैवेयक के समान (नवरं) विशेष (सतुन्तरे विमाणावाससए) एक सौ सात विमान (भवंतीति मक्खाय) हैं, ऐसा कहा है (ते णं विमाणा जाव पडिरूवा) वे विमान यावत् प्रतिरूप हैं (एत्थ णं) यहाँ (मज्झिमगेविज्जगाणं) मध्यम प्रैवेयकों के (जाव) यावत् (तिसुवि) तीनों अपेक्षाओं से भी (लोगस असंखेज्जइलागे) लोक के असंख्यातवें भाग में हैं (तत्थ णं) वहां (वहवे मज्झिमगेविज्जगा देवा परिवसंति) बहुत मध्यम प्रैवेयक देव निवास करते हैं (जाव अहमिंदानाम) यावत् सभी अहमिन्द्र (ते देवगणा पण्णता) वे देवगण कहे गए हैं (समणाउसो) हे आयुष्मन् श्रमणो ! (कहि णं भंते ! उवरिम गेविज्जगाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! ऊपरी अवेयकों के पर्याप्त और अपर्या प्त देवों के स्थान कहां कहे हैं (कहि णं संते ! उपरिमणेविज्जए देवा १] (पत्थडा) ५२था२ (पण्णत्ता) ४i छ (पाईणपडीणाय या) पूर्व पश्चिममा सian (जहा हेट्टिमगेविज्जगाणं) मरतन अवेयाना समान (नवरं) विशेष (सत्तत्तरे विमाणावाससए) से सोने सात विमान (हवंतीति मक्खाय) छे ये प्रमाणे उस छ. (तेणं विमणा जाव पडिरूवा) के विमान यावत् प्रति३५ छ. (एत्थणं) मडी (मज्झिमगेविज्झगाणं) मध्यम अवेयाना (जाव) यावत् (तिसुवि) नो अपेक्षामाथी ५५ (लोगम्स असंखेज्जइभागे) सोना २मस च्यात मागोमा छे. (तत्थण) त्या (बहवे मज्झिमगेविज्जगा परिवसंति) ध! मध्यम अवय है। निवास ४२ छ, (जाव अहमिदा नाम) यावत् ५५॥ मभिद्र छे. (ते देवगणा पण्णत्ता) मे गये। अपामा मावेस छ. (समणाउसो) मायुष्यभन् श्रभो। (कहि णं भंते ! उवरिमगेविज्जगाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता) હે ભગવન ! ઊપરના પર્યાપક અપર્યાપક શ્રેયક દેવાના સ્થાન કયાં કહેલા છે? (कहि णं भंते ! उवरिमगेविजए देवा परिवसंति) सन् ! १५२न। अवेय४ हे।

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