Book Title: Pragnapanasutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 942
________________ ઇંટર प्रज्ञापनासूत्रे वनत्थि तस्स ओवम्मं । किंचि विसेसे णित्तो सारिक्खमिणं सुणह वोच्छं ॥ १६६ ॥ जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोतुण भोयणं कोई । तपहा हा विमुको अच्छिन जहा अमिय तितो ॥१६७॥ इय सव्वकालतित्ता अतुलं निव्वाणमुवगया सिद्धा । सासयमव्वावाहं चिति सुही सुहं पत्ता ॥ १६८ ॥ सिद्धति य बुद्धतिय पारगयत्ति य, परंपरं गयति । उम्मुक्क कम्म कवया अजरा अमरा असंगा य ॥ १६९ ॥ निच्छिन्न सव्व दुक्खा जाइ जरामरण वंधण विमुक्का | अव्वावाहं सोक्खं अणुहोंती सासयं सिद्धा ॥ सू० २९॥ ॥ इइ वित्तीयं ठाणपयं समत्तं ॥ छाया - कुत्र खलु भदन्त | सिद्धानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? कुत्र खल भदन्त ! सिद्धाः परिवसन्ति ? गौतम | सर्वार्थसिद्धस्य महाविमानस्य उपरिमायाः स्तूपिकायाः द्वादश योजनानि ऊर्ध्वम् अव्यावाध्या. अत्र खलु ईपत्प्राग्भारा नाम प्रथिवी प्रज्ञप्ताः पञ्चचत्वारिंशद् योजनशतसहस्राणि आयामविष्कम्भेण, एकां सिद्धों के स्थान आदि का निरूपण शब्दार्थ - ( कहि णं भंते ! सिद्धाणं ठाणा पण्णत्ता ? ) हे भगवन् ! सिद्धों के स्थान कहां कहे हैं ? ( कहि णं सिद्धा परिवसंति ?) सिद्ध' जीव कहां निवास करते हैं ? (गोयमा) हे गौतम! (सम्वसिद्धस्स) सर्वार्थसिद्ध (महाविमाणस्स) महाविमान के ( उवरिल्लाओ धूभियग्गाओ ) ऊपरी स्तूपिका के अग्रभाग से (दुबालस जोयणे ) बारह योजन (उड्डू) ऊपर ( अबाहाए) विना बाधा के ( एत्थ णं) यहां (ईसीभारा णामं पुढवी पण्णत्ता) ईषत् प्राग्भारा नामक पृथिवी कही है સિદ્ધોના સ્થાન આદિનું નિરૂપણ शब्दार्थ - (कहि णं भंते । सिद्धाणं ठाणा पण्णत्ता 2 ) लगवन ! सिद्धोना स्थान ह्यां छे ? ( कहि णं भंते । सिद्धा परिवसंति ?) सिद्धव यां निवास ४रे छे ? (गोयमा !) हे गौतम! ( सव्वसिद्धस्स ) सर्वार्थसिद्ध (महा विमणस्स) भहाविभानना ( उवरिल्लाओ थूभियगाओ ) अपरी स्तूपाना अश्रलाशश्री (दुवालसजोयणे) मार योन (उइट ) ५२ ( अब हाए ) विना भडयाशु (एत्थण) मडि (ईसीप भारा णासं पुढवी पण्णत्ता) त्याला नाम पृथिवी

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