Book Title: Pragnapanasutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 883
________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२७ व्रम ठोकादिदेवानां स्थानादिकम् ९२३ परिसन्ति ! गौतम ! महाशुक्रस्य कल्पस्य उपरि सपक्षम् सप्रतिदिन यावद् उत्प्रेत्य अत्र खलु सहस्रारो नाम कल्पः प्रज्ञप्तः, प्राचीनप्राचीनायतः, यथा ब्रह्मलोकः, नवरं पविमानावाससहस्राणि भवन्ति इत्याख्यातं, देवास्तथैव, यावद् अवतंसका यथा ईशानस्य अतंसकाः, नवरस् मध्ये अत्र सहस्रारावतंसको यावद् विहरन्ति, सहस्रारोऽत्र देवेन्द्रो देवराजः परिवसति, यथा सनत्कुमारो, नवरम् पण्णां विमानावाससहस्राणाम्, त्रिंशतः सामानिकसाहस्रीणाम्, चतसृहे भगवानू ! पर्याप्त-अपर्याप्त सहस्त्रार देवों के स्थान कहां कहे हैं ? (कहि णे भंते ! सहस्त्रारदेवा परिवसंति ?) हे भगवन् ! सहस्रारदेव कहां निवास करते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (महासुक्कस्स कप्पस्त उप्पि) महाशुक्र कल्प के ऊपर (सपक्खि सपडिदिसि) समान दिशा और समान विदिशा में (जाव उप्पइत्ता) यावत् जाकर (एत्थणं) यहां (सहस्सारे नामं कप्पे पण्णत्ते) सहस्रार नामक कल्प कहा है (पाईणपडीणायए) पूर्व-पश्चिम में लम्बा (जहा बंगलोए) जैसा ब्रह्मलोक कल्प (नवरं छविमाणावाससहस्सा भवंतीति भक्खायं) विशेष यह कि छह हजार विमान हैं, ऐसा कहां है (देवा तहेव) देवों का वर्णन उसी प्रकार-पूर्ववत (जाव वडिंसगा जहा ईसाणस्स वडिसगा) यावत् ईशान कल्प के अवतंसकों जैसे अवतंसक (नवरं मज्झे इत्थ सहस्सारवडिसए) विशेष यह है कि यहां मध्य में सहस्रारावतंसक है (जाव विहरंति) यावत् विचरते हैं (सहस्सारे इत्थ देविंदे देवराया परिवसइ) सावन् । पर्यात तथा अ५यस मसा२ हवाना स्थान ४यां ह्या छ ? (कहिणं 'भंते । सहस्सारदेवा परिवसंति ?) मापन् । सडसार ४५ ४या निवास ४२ छ ? (गोयमा) हे गौतम (महासुक्फस्स कप्पस्स उप्पिं) महाशु ४६५। ५२ (सपक्खिं सपडिदिसि) समान मने समान विशायामा (जाव उप्पइत्ता) यावत् ४४२ (एत्थणं) डि (सहस्सारे नाम कप्पे पण्णत्ते) सहसा२ नाम ४६५ ४ो छ (पाईण पडीणायए) पूर्व पश्चिममi ain (जहा वंभलोए) रेवा ब्रह्मा ४६५ (नवरं छव्विमाणावाससहस्सा भवंतीति मक्खाय) विशेष ये छ ॐ ७ २ विमान छ मे ४यु छ (देवा तहेव) हेवाना वन मे प्रारे पूत (जाव वडिसगा जहा ईसाणरस वाडसगा).यावत् शान४ ४६५ना यवत । 40 मत सी (नवरं मज्झे इत्थ सहस्सारवडिसए) विशेष मा छ , मध्यमा सडसावतस४ छ (जाव विहरंति) यावत् वियरे छ (सहस्सारे इत्थ देविदे देवराया परिवसइ) मडि ससार नाम हेवेन्द्र १२।०४ क्से छ (जहा सणंकुमारे) म सनभारेन्द्र (नवरं छण्हं विमाणावाससहस्साणं) छ

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