Book Title: Pragnapanasutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 906
________________ प्रज्ञापनास्त्रे तवादिततन्त्रीतलतालत्रुटितघनमृद्गपटुप्रवादितरवेण दिव्यान् भोगभोगान् भुञ्जानाः विहरन्ति-तिष्ठन्ति, 'चाळिसगा जहा ईसाणस्स वाडिसगा' सहस्रारकल्पस्य अवतंसकाः, यथा ईशानस्य कल्पस्य पञ्च अङ्कादयः अवतंसकाः प्रतिपादितास्तथा प्रतिपत्तव्याः किन्तु 'नवरं' नवरम्-ईशानकल्पापेक्षया विशेपस्तु 'मज्झे-इत्थ सहस्सारवडिसए' मध्ये अङ्गादिचतुरवतंसकमध्ये, अत्र सहस्रारकल्पे, सहस्रारावतंसको बोध्या, यावद् उपर्युक्तसहस्रारदेवाः, दिव्यान् भोगभोगान् भुञ्जाना विहरन्ति-आसते इत्याशयः, 'सहस्सारे इत्थ देविंदे देवराया परिवसई' सहस्रारोऽत्र-सहस्रारकल्पे, देवेन्द्रो देवराजः परिवसति, 'जहासणंकुमारे' यथा सनत्कुमारः प्रतिपादितस्तथा प्रतिपादनीयः, किन्तु-'नवरं' नवरम्-ईशानापेक्षया विशेषस्तु 'छण्हं विमाणावाससहस्साणं' पण्णां विमानावासहस्राणाम् 'तीसाए सामाणियसारस्सीणं' त्रिंशतः सामानिकसाहस्रीणाम् 'चउण्हय तीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं' चतसृणाञ्च त्रिंशताम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणाम् 'जाव आहेवच्चं कारेमाणे विहरइ' यावत्-चतुर्णा लोकतल, ताल, त्रुटित, मृदंग आदि वाद्यों की मधुर ध्वनि के साथ दिव्य भोगों को भोगते हुए रहते हैं। सहस्रार कल्प के अवतंसक ईशान कल्प के अवतंसकों जैसे समझने चाहिए, विशेषता यह है कि सहस्रार कल्प में अंकावतंसक आदि चार अवतंसकों के मध्य में सहस्रारावतंसक है । यावत् सहस्त्रार कल्प के देव दिव्य भोग भोगते हुए रहते हैं। ___ सहस्रार कल्प में सहस्रार नामक देवेन्द्र देवराज निवास करते हैं । सनत्कुमारेन्द्र के सदृश उसका वर्णन समझ लेना चाहिए, मगर विशेष यह है कि सहस्रारेन्द्र छह हजार विमानों का, तीस हजार सामानिक देवों का, एक लाख वीस हजार आत्मरक्षक देवों का अधि. વાદકે દ્વારા વાદિત વીણ, તલ, તાલ; ત્રુટિત, મૃદંગ આદિ વાદ્યોના મધુર વાનની સાથે દિવ્ય ભેગેને ભેગવતા રહે છે. સહસ્ત્રાર કલપના અવતંસક ઇશાન કલપના અવતંસકો જેવા સમજવા જોઈએ, વિશેષતા આ છે કે સહસ્ત્રાર ક૫માં અંકાવતંસક આદિ ચાર અવતંસકેના મધ્યમાં સહસ્ત્રારાવતંસક છે. ચાવતુ સહસ્ત્રાર ક૯૫ના દેવ દિવ્ય ભેગ ભેગતા રહે છે. સહસ્ત્રાર કલ્પમાં સહસાર નામના દેવેન્દ્ર દેવરાજ નિવાસ કરે છે. સનકુમારેન્દ્રના સરખું તેનું વર્ણન સમજી લેવું જોઈએ, પરંતુ વિશેષ આ છે કે સહસરેન્દ્ર છ હજાર વિમાનના, ત્રીસ હજાર સામાનિક દેવોના, એક લાખ વીસ હજાર આત્મરક્ષક દેવેના અધિપતિ બનીને રહે છે. યાવત, ચાર લેક

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