Book Title: Pragnapanasutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 916
________________ ९५६ प्रज्ञापनासूत्रे स्तलकर्णपीठधारी, विचित्रहस्ताभरणो विचित्रमालामालिः, कल्याणकप्रवरवस्त्रपरिहितः, कल्याणकप्रवरमाल्यानुलेपनः, भास्वरवोन्दिः, प्रलम्बवनमालाधरो दिव्येन वर्णगन्धादिना दशदिश उद्योतयन् प्रभासयन् स्वेषां स्वेषां विमानावासादीनाम् आधिपत्यादिकं कुर्वन् विहरति तिष्ठति 'नवरं' नवरम् - प्राणतापेक्षा विशेषस्तु 'तिo विमाणावासस्याणं' त्र्याणां विमानावासशतानाम् 'दस सामाणियसाहस्सीणं' दशानां सामानिकसाहस्रीणाम् ' चत्तालीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं' चत्वारिंशतः आत्मरक्षकदेव साहस्रीणाम् ' आहेवच्च कुव्वाणे जाव विहरs' आधिपत्यम्, पौरपत्यम् कुर्वन् यावत् पालयन महताऽहतनाट्यगीतवादिततलताल तिघन मृदपटुवादितरवेण दिव्यान् भोगभोगान् भुखानो बिहरति - निष्ठति, अथ द्वादशवैमानिकदेव विमानसंख्या संग्राहकगाथाद्वयमाह - स्थल को मर्षण करने वाले कर्णपीठ का धारक है । हाथों में अद्भुत आभूषण पहनता है । उसका मुकुट मालामय है । कल्याणकारी एवं अत्युत्तम वस्त्रों का परिधान करता है । कल्याणकारी एवं उत्तम माला तथा अनुलेपन को धारण करता है । उसकी देह देदीप्यमान होती है । लम्बी वनमाला का धारक है । अपने दिव्य वर्ण-गंध आदि से दशों दिशाओं को प्रकाशित और प्रभासित करता हुआ अपने विमानावास आदि का आधिपत्य आदि करता हुआ रहता है । प्राणतेन्द्र से अच्युतेन्द्र में विशेषता यह है कि अच्युतेन्द्र तीन सौ विमानों का, दस हजार सामानिक देवों का, चालीस हजार आत्मरक्षक देवों का अधिपतित्व, अग्रेसरत्व आदि करता हुआ, नाटक, गीत तथा वीणा, तल, ताल, त्रुटित एवं मृदंग आदि की मधुर ध्वनि के साथ दिव्य भोगों को भोगता हुआ रहता है । अब बारहों कल्पों में विमानों की संख्या की संग्रहणी गाथाएं સ્થળને મણ કરનારા ક પીઠના ધારક છે. હાથેામાં અદ્ભુત આભૂષણ પહેરે છે. તેમના મુગટ માલામય છે. તેઓ કલ્યાણકારી તેમજ અત્યુત્તમ વસ્ત્રોનું પરિધાન કરે છે. કલ્યાણકારી તેમજ ઉત્તમ માળા તથા અનુલેપનને ધારણ કરે છે. તેમના દેહ દેદીપ્યમાન હાય છે. લાખી વનમાળાના ધારક છે, પેાતાના દિવ્ય વગધ આદિથી દશે દિશાઓને પ્રકાશિત અને પ્રભાસિત કરતા થકા રહે છે. પ્રાણતેન્દ્રથી અચ્યુતેન્દ્રમાં વિશેષતાં આ છે કે અચ્યુતેન્દ્ર ત્રણસે વિમાનાના દશ હજાર સામાનિક દેવાના, ચાલીસ હજાર આત્મરક્ષક દેવાના અધિપતિત્વ, अग्रेसरत्व, माहि पुरता रहिने नाट, गीत तथा वीणा, तक्ष, तास, त्रुटित તેમજ મૃદંગ આદિના મધુરધ્વનિ સાથે દિવ્ય ભાગાને ભાગવતા રહે છે.

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