Book Title: Pragnapanasutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रशापनाम
९६३ लण्हा, घट्टा, मट्टा, नीरया, निम्मला, निप्पंका, निक्कंकडः च्छाया, सप्पमा, सस्तिरीया सउज्जोया, पासाईया, दरिसणिः ज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एत्थ णं अणुन्तरोववाइयाणं देवाणं पजत्तापज्जत्ताणं ठाणा पक्षणत्ता, तिसु वि लोयस्स असंखेज्जइ. भागे, तत्थ णं बहवे अशुत्तरोववाझ्या देवा परिक्संति, सव्वे समिडिया, सहके समबला, सव्वे समाणुभावा महासुक्खा, अणिंदा, अप्पेसा अपुरोहिया अहमिंदा, नामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो! ॥सू० २८॥ ___-छाया-कुत्र खलु भदन्त ! अधस्तन ग्रैवेयकाणाम् पर्याप्तापर्याप्तानात् स्थानानि प्रज्ञप्तानि ! कुत्र खलु भदन्त ! अघस्तनौवेयका देवाः परिवसन्ति ? गौतम ! आरणाच्युतयोः कल्पयोरुपरि यावत् ऊर्ध्वम् दरम् उत्पत्य अत्र खलु अधस्तनौवेयकाणां देवानां त्रयो ग्रैवेयकविमानप्रस्तटाः प्रज्ञप्ताः, प्राचीन प्रतीचीनायताः उदीचीन दक्षिण विस्तीर्णाः प्रतिपूर्णचन्द्र संस्थानसंस्थिताः, अचिं
ग्रैवेयकादि स्थानों की वक्तव्यता शब्दार्थ-(कहिणं अंते ! हिडिमगेविजगाणं पज्जत्तापजत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् अधस्तन पर्याप्त-अपर्याप्त त्रैदेयक देवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? (कहि णं भंते ! हिहिमोविजगा देवा परिवसंति?) हे भगवन् ! अधस्नल अवेशकदेव कहां निवास करते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (आरणच्चुयाणं कप्पाणं उपि) आरण-अच्युत कल्पों के ऊपर (जाव) चावत् (उडूं) ऊपर (दूरं) दूर (उप्पइत्ता) जाकर (एत्थणं). यहां (हिहिमगेविनगाणं देवाणं) अधस्तन ग्रैशेयक देवों के (तओ) तीन (गविजग विमाणपत्थडा) धैवेयक विमानों के प्रस्तट-पाथडे
શૈવેયકાદિસ્થાનની વક્તવ્યતા शहाय-(कहि णं भते । हिटिम गेचिज्जगाण पज्जत्तापजत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ) : હે ભગવન્ ! અધસ્તન પર્યાપ્ત-અપર્યાપ્ત વેયક દેવોના સ્થાન કયાં કહ્યાં છે? (कहि णं भंते ! हिदिमोविज्जगा देवा परिखसंति ?) भगवन् । अधस्तन ग्रेवेयर देव या निवास ४२ छ ? (गोयमा ?) ॐ गौतम | (आरणच्चुयाणं कप्पाणं उप्पि) मा२]-अश्युत ४६५ना १५२ (जाव) यावत् (उ8) अ५२ (दूरं) ६२ (उत्पइत्तो)
(एत्यण) मडि (हिडिमगेविज्जगागं देवाणं) मस्तन अवेय हेवाना (तओं) ! (गेविजगविमाणपत्थडा) अवय विमानाना प्रस्त२-५२थार

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