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प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२७ ब्रह्मलोकादिदेवानां स्थानादिकम् ९१९ धर्मावतंसकाः, नवरं मध्ये अत्र ब्रह्मलोकावतंसकः, अत्र खलु ब्रह्मलोकदेवानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि, शेपं तथैव यावद्-विहरन्ति, ब्रह्मा अत्र देवेन्द्रो देवराजः परिवसति, अरजोऽम्बरवस्त्रधरः, एवं यथा सनत्कुमारो यावत् विहरंति, नवरं चतुर्णां विमानावासशतसहस्राणाम्, पष्टेः सामानिकसाहस्रीणाम् चतसृणाम् पष्टी. नाम् आत्मरक्षकदेवसाहतीणाम्, अन्येषां च बहूनां यावद् विहरति, कुत्र खलु वडिसया) अवतंसक सौधर्मावतंसकों के समान (नवरं) विशेष (मज्झे इत्थ बंभलोयवडिसए) मध्य में यहां ब्रह्मलोकावतंसक है (एत्थ णं) यहाँ (बंभलोगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्त और अपर्याप्त ब्रह्मलोक देवो के (ठाणा पण्णत्ता) स्थान कहे हैं (सेसं तहेव जाव विहरंति) शेष उसी प्रकार-पूर्ववत् यावत् विचरते हैं।
(बंभ इत्थ देविंदे देवराया परिवसइ) ब्रह्म यहां देवेन्द्र देवराजा निवास करता है (अरयंवरवत्थधरे) रज रहित आकाश के समान वस्त्रों का धारक (एवं जहा सणकुमारे) इस प्रकार जैसे सनत्कुमारेन्द्र (जाव) यावत् (विहरइ) विचरता है (नवरं) विशेष (चउण्हं विमाणावाससयसहस्साणं) चार लाख विमानों का (सहीए सामाणियसाहस्सीणं) साठ हजार सामानिकों का (चउण्हं सट्ठीए आयरक्खदेवसाहस्सीणं) चार साठ हजार अर्थात् दो लाख चालीस हजार आत्मरक्षक देवों का (अन्नेसिं च बहणं) और अन्य बहुतों का (जाव विहरइ) यावत् विचरता है। सयसहस्सा) यार at विमान (वडिंसयो जहा सोहम्मवडिंसया) गावतस सौधावत सीना समान (मज्झे इत्थ वंभलोयवडिंसए) मध्यमा यहि ब्रह्म सावतस छे (एत्थणं बंभलोगदेवाणं पजत्तापज्जत्ताणं) डि पति मने अपर्यात ब्रह्मतो हेवाना (ठाणा पण्णत्ता) स्थान हा छ (सेसं तहेव जाव विहरंति) शेष गरी आरे पूर्ववत् वियरे छे
(बंभे इत्थ देविंदे देवराया परिवसइ) ब्रह्म डि हेवेन्द्र १२ निवास ४२ छ (अरयंवर पत्थवरे) २२१ २१त २ शना समान पखोना घा२४ (एवं जहा सणकुयारे) मे ४२ रेभ सनामार हेवेन्द्र (जाव) यावत् (विहरइ) वियरे छ (नवरं) विशेष (चउण्हं विमाणावाससयसहस्साण) या२ साप विमा. नाना (सट्ठीए सामाणियसाहरसीणं) सा४ २ सामानिना (च उण्हं सट्ठीए आयरक्खदेवसाहस्सीणं) या२ सा २ अथवा मे स न्यासीस २ मात्मरक्ष वाना (अन्नेरसिंच बहूणं) अने, अन्य घासाना (जाव विहरइ) वियरे छे.