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' प्रमापनासूत्र पर्याप्तानाम् अर्द्धत्रयोदशजातिकुलकोटियोनि प्रमुख शतसहाणि भवन्तीत्याख्यातम् । ते एते जलचरपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः ॥सू ०३१॥
टीका-अथ तेषु जलचरपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकान् प्रस्पयितुमाह-से किं तं जलयरपंचिंदियतिरिक्ख जोणिया । अथ के ते, कतिविधा इत्यर्थः जलचर पञ्चेन्द्रियतिर्ययोनिकाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'जलचरपंचिंदियतिरिवखजोणिया पंचविहा पप्णत्ता' जलचरपञ्चन्द्रिय तिर्यग्योनिकाः पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा-'मच्छा १, कच्छभा२, गाहा ३, मंगरा ४, मुसुमारा ५, मत्स्याः , कच्छपाः, ग्राहाः, मकराः, शिशुमाराश्च जलजन्तुविशेषाः, तेपु मत्स्यभेदान् प्ररूपयितुमाह-'से किं तं मच्छा ?' 'से' अथ 'कि तं' के ते-कतिविधाः 'मच्छा' जलचरपंचेन्द्रिय तियंचयोनिकों के (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्त और अपर्याप्त के (अद्धतेरस जाइकुलकोडि जोणिप्पमुहसयसहस्साई) साढे वारह लाख जाति कुलकोटियों के योनिप्रवह (भवंतीतिमक्खायं) होते है, ऐसा कहा है (से तं जलयरपंचिंदिय तिरिव खजोणिया) यह जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की प्ररूपणा हुई ॥३१॥
टीकार्थ-अब जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की प्रस्पणा की जाती है। प्रश्न है कि जलचर पंचेन्द्रिय तिथच कौन हैं अर्थात् वे कितने प्रकार के हैं ? भगवान् उत्तर देते हैं-जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव पांच प्रकार के कहे गए हैं। वे ये हैं-(१) मच्छ (२) कच्छप (३) ग्राह (४) मकर और (५) सुसुमार।
मत्स्य कितने प्रकार के हैं ? अगवान ने कहा-मत्स्य अनेक प्रकार के होते हैं। वे इस प्रकार हैं-लक्ष्ण मत्स्थ, खवल्ल मत्स्य, जुंगमत्स्य, यर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं) भ२७ विगैरे माय२ पयन्द्रिय तिय"य योनिडानी (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पात भने मर्यात (अद्धतेरस जाई कुल कोडियो जोणिप्पमुहसयसहस्साई) सर मार दास जति टियाना योनि प्रवाड (भवंतीति मक्खाय) उय छ सम धुळे (से तं जलयरपंचिंदिय तिरिक्खजोणिया) २ सय ५'यन्द्रिय तिय यानी अ३५ ७. ॥ सू. 30॥ | ટીકાથ-હવે જલચર પંચેન્દ્રિની પ્રરૂપણ કરાય છે–
પ્રશ્ન-જલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ કોણ છે? અર્થાત્ તેઓ કેટલા પ્રકારના છે ? : - શ્રી ભગવાન ઉત્તર આપે છે–જલચર પંચેન્દ્રિય તિયચ જીવ પાંચ પ્રકારના ४९सा छ.-(१) मत्स्य (२) ४२७५ (3) र (४) भ४२ अने. (५) सुसुभा२. મત્સ્ય કેટલા પ્રકારના છે ? ૬ શ્રી ભગવાને કહ્યું મત્સ્ય અનેક પ્રકારના હોય છે તે આ પ્રકારે છે ગ્લણ મત્સ્ય, અવલ્લ મત્સ્ય, જુગમસ્ય, વિજઝટિત મત્સ્ય, હલિમસ્ય,