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ग्रंशापनासूत्रे तथाप्रकाराः, ते एते शिल्पायीः ।।। अब के ते मागायीः ? भापार्याः ये खलु अर्धमागध्या भापया भाषन्ते । तत्रापि च खलु यत्र ब्राह्मी लिपिः प्रवर्तते । ब्राह्मयां लिपौ अष्टादशविधं लेखविधानं प्रज्ञप्तम् , तद्यथा-ब्राह्मीर, यवनानिका२, दोपापुरिका३, खरोट्टी४, पुष्करणारिका५, भोगवतिका६, प्रहरादिका७. अन्ताक्षरिका८, अक्षर पृ-पु-प्टिका९, वैनयिकी १०, निहविना११, अङ्कलिपिः १२, गणितलिपिः १३, गन्धर्व लिपिः१४, आदर्शलिपिः १५, माहेश्वरी १६, पुच्छकार (लेप्पारा) लेप्य बनाने वाले (चित्तार।) चित्रकार (संखारा) शंग्वकार (दंतारा) दन्तकार (भंडारा) भाण्डकार (जिज्झगारा) जिज्झकार (सेल्लारा) सेल्लकार (कोडिगारा) कोटिकार (जे यावन्ने तहप्पगारा) अन्य जो इसी प्रकार के हैं। (ले त्तं सिप्पारिया) ये शिल्पार्य हुए।
(से किंत भासारिया ?) भाषा से आर्य कितने प्रकार के हैं ? (जे अदमागहाए भासाए भासे ति) जो अर्द्धमागधी भाषा बोलते हैं (तत्थ वि य णं जत्थ बंभी लिवी पबत्तइ) उनमें भी जहां ब्राह्मी लिपि का व्यवहार होता है (अट्ठारसविहे) अारह प्रकार का (लेखविहाणं) लिपिविधान (पण्णत्ते) कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (बंभी) ब्राह्मी (जवणागिया) यवनी (दोसापुरिया) दोषापुरिका (खरोटी) खरोही (पुक्खरसरिया) पुडकरशारिका (भोगवइया) भोगवनी (पहराइया) प्रहरादिका (अंतक्खरिया) अन्ताक्षरी (अक्खरपुरिट्ठया) अक्षर पुष्टिका (वेगइया) वैनयिकी (लिण्हइया) निहविका (अंकलिपी) अंकमनावना। (पुच्छारा) २७४१२ (लेप्पारा) देय मनाना। (चित्तारा) (यार (संखारा) २१२ (दंतारा) २ (भंडारा) Hist२ (जिज्झगारा) २ (सेल्लारा) सेस४।२ (कोडिगारा) आ४ि२ (जे यावन्ने तहापगरा) मी आपा मान छ (से तं सिप्पारिया) मा शि५ मा छे.
(से किं त भासारिया ?) भाषाथी मार्यो । २॥ छ ? हापाथी माय (जे णं अद्धमागहाए भासाए भासंति) यी म भागधी मारी छ (तत्य वि य णं जत्थ बंभी लिबी पवत्तइ) तेमा ५न्यां प्राझी लिपीन व्यवहार थाय छ (अद्वारसविहे) 24.२ प्रा२ना (लेक्ख विहाण) सिपी विधान (पण्णत्ते) मधु छ (त जहा) ते मा शत छ।
(वभी) प्राझी (जवणिया) यवनी (दोसा पुरिया) हो। पु४ि (खरोटी) रोट्टी (पुक्खरसारिया) १०४२ सा२ि१ (भोगवइया) गवती (पहराइया) प्र. शाि (अंतक्खरिया) अन्ताक्षरी (अक्खर पुट्टिया) AA२ पृष्टि। (वेणइया) वैनायि। (निण्हइया) नि-वि। (अंकलिवी) ५४ सिपी (गणियलिवी) गति लिपी