________________
प्रमेयवोधिनी टीका द्वि. पद २ सू २२ पिशाचादिव्यन्तरदेव स्थानानि ८४१ सन्निहितसामान्ययोरपि भणितव्याः कथितव्या इत्यर्थ तेपाञ्च व्यन्तरावान्तराष्टजातिभेदानां संग्राहकगाथामाह-'संगहणीगाहा' संग्रहणीगाथा-'अणवन्निय पणव न्निय इसिवाइय-भूयवाइया चेव । कंदिय महाकंदिय कोहंडापयंगएचेव ॥१४३॥ अणपणिक पणपर्णिक ऋषिवादित भूतवादिताश्चैव । स्कन्दिक महास्कन्दिक कूष्माण्डाः पतंगतश्चैव, अथ तेपामेवेन्द्रसंग्राहकगाथाद्वयमाह-'इमे इंदा' इमेवक्ष्यमाणाः इन्द्राः-संनिहिया सामाणधायविधाए इसीय इसिबाले । ईसर महेसरा हवइ सुवच्छे विसाले य' ॥१४४ । सन्निहिताः सामान्याः धातो. करते हैं-इन अणपणिक देवों के स्थानों में सन्निहित और सामान्य नामक दो अणपर्णिकेन्द्र, अणपर्णिक राजा हैं । ये दोनों इन्द्र महर्दिक महाद्युतिक, महायशस्वी, महाबल, महानुभाग और महासुख से सम्पन्न हैं। उनके वक्षस्थल हार से सुशोभित रहते हैं, इत्यादि पूर्वोक्त सभी इन्द्रों के विशेषण यहां भी समझ लेना चाहिए । जैसे काल और महाकाल दक्षिण और उत्तर दिशा के पिशाचेन्द्रों के विषय में कहा है, उसी प्रकार सन्निहित और सामान्य नामक इन्द्रों के विषय में भी कहना चाहिए। ____व्यन्तरों के अवान्तर जाति के भेदों की संग्राहिका गाथा करते हैं(१) अणपर्णिक (२) पणपर्णिक (३) ऋपिवादित (४) भूतवादित (६) स्कन्दित (६) महास्कंदित (७) कूष्माण्ड और (८) पतंग ये आठ व्यन्तरों के अन्तर भेद हैं ॥४३॥
इनके इन्द्रों के नामों की संग्रहणी गाथा इस प्रकार है-(१) सन्नि: हित (२) सामान्य (३) धात (४) विधात (५) ऋषि (६) ऋपिवा (पा) આવે છે–આ અણપણિક દેના સ્થાનમાં સન્નિહિત અને સામાન્ય એ નામના બે અણપણિ કેન્દ્ર અણપણિક રાજા છે. આ બને ઈન્દ્ર મહદ્ધિ, મહાઘતિક મહાયશસ્વી, મહાબલ મહાનુભાગ અને સુખથી સંપન્ન છે. તેમનું વક્ષસ્થલ હારથી સુશોભિત રહે છે. વિગેરે પૂર્વોક્ત બધા ઈન્દ્રોના વિશેષણુ અહીં પણ સમજી લેવાં જોઈએ. જેમ કાલ અને મહાકાલ દક્ષિણ અને ઉત્તર દિશાના પિશાચેન્દ્રોના વિષયમાં કહ્યુ છે–એજ પ્રકારે સન્નિહિત અને સામાન્ય નામક ઈન્દ્રોના વિષયમાં પણ કહેવું જોઈએ.
વ્યન્તરના જાતિ ભેદોની સંચાહિકા ગાથા કહે છે-(૧) અપર્ણિક (२) ५५४ (3) ३षिवाहित (४) भूतवाहित (५) २४न्हित (6) माहित (૭) ઈશ્વર કૃમાડ અને પતંગ આ વ્યન્તરના અવાન્તર ભેદે છે. ૪૩ તેના
प्र० १०६