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प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२२ ज्योतिप्कदेव स्थानानि ८४५ भवन्ति इत्याख्यातं, तानि खलु विमानानि अर्द्धकपित्थकसंस्थानसंस्थितानि सर्वस्फटिकमयानि, अभ्युद्गतोत्सत प्रभासितानि इव विविधमणिकनकभक्तिचित्राणि वातोद्धृतविजय वैजयन्ती पताकाच्छनातिच्छकलितानि, तुगानि, 'गगनतलानुलिखच्छिखराणि, जालान्तररत्नपतरोन्मीलितबदमणिकनक स्तूपिकानि, विकसितशतपत्र पुण्डरीकतिलकरत्नार्द्धचन्द्रचित्राणि नानामणिमयदामालकृतानि, अन्तोवहिश्च श्लक्ष्णानि तपनीय रुचिरवालुकाप्रस्तटानि, सुखस्पर्शानि देवों के (तिरियं) तिछ (असंखेज्जा) असंख्यात (जोइलियविमाणावास सयसहस्सा) लाख ज्योत्तिष्कों के विमानावास (भवंतीति 'मक्खायं) हैं, ऐसा कहा है । (ते णं विमाणा) वे विमान (अद्धकविदृगसंठाणसंठिया) आधे कवीठ के आकार के हैं (सव्वफलिहामया) पूर्णरूप से स्फटिकमय (अन्भुग्गयमूसियपहसिया) ऊपर उठे हुए
और प्रभा से श्वेत (विविहमणिकणगरयणभत्तिचित्ता) विविध मणियों कनक और रत्नो की छटा से चित्र-विचित्र (वाउद्यविजयवेजयंती पडागाछत्ताइछत्तकलिया) हवा ले उडती हई विजय-वैजयन्ती-पताका-छत्र-और अतिछन्त्रों युक्त (तुंगा) ऊंचे (गगणतलमहिलंघमाणसिहरा) आकाशतल को उल्लंघन करने वाले शिखरों से युक्त (जालंतररयणपंजरुम्मिलियब्व) जालियों में लगे हुए रत्न मानों पीजरे से बाहर निकाले गए हैं (मणिरयणथूसियागा) मणियों तथा रत्नों को स्तृपिकाओ वाले (वियसियतयवत्तपुंडरीया) जिनमें शतपत्र और पुण्डरीक कमल खिले हैं (तिलयरयगड्ढचंदचित्ता) (जोइसियविमाणावास सयसहस्सा) १५. न्याति देवाना विमानापास (भवंतीति मक्खायं) छे, म ४ह्यु छ (तेणं विमाणा) ते विमान (अद्धकविग 'संठाणसंठिया) अर्धा ४वीन मा४।२॥ छ (सव्वफलिहामया) पूर्ण ३
टिभय (अब्भुग्गयमूसिय पहसिया) 14६.२ मने प्रमाथी श्वेत (विविह मणि कणगरयणभत्तिचित्ता) विविध मणियो ४४ भने रत्नानी छाथी यि वियित्र (पाउधूयविजयवेजयंतीपडागा छत्ताइ छत्तकलिया) पाथी ती विन्य-वैयन्ती-पता छत्र मने मतिनाथी युटत (तुंगा) आये (गगणतलमहि लंघमाणसिहरा) २४ तसने Seeधन ४२वा शिपथी युद्धत (जालंतर रयणपंजरुम्मिलियव्य) जाये रत्न तो पिरामाथी मार ४ाढवामा माव्या 314 (मणिरयणथूभियागा) भणियो तथा रत्नानी स्तूपिया पाय (वियसिय सयपत्तपुंडरीया) मा शतपत्र भने १४ ४भाजित छ (तिलयरयणड्ढचंचित्ता) ति तथा स्नभय म य-द्रोथी त्रि विचित्र