________________
- ४६८
प्रशापनासूत्र अनभिग्रहीतसुदृष्टिः, सोपसचिवति जातव्यः । अविशारदः प्रवचने, अनभिगृहीतथ शेपेषु ॥११॥ यः अस्ति कायधर्म, श्रुतधर्म खलु चारित्रधर्मश्च । श्रद्दधाति जिनाभिहितं, स धर्मरुचिरिति ज्ञातव्यः ।।१२।। परमार्थसंस्तवो वा, सुदृष्टपरमार्थ सेवनावाऽपि ।
व्यापन्न कुदर्शनवर्जनं च सम्यक्त्वश्रद्धानम् ॥१३॥ किरिया भाव रुई) जो किया भाव मवि वाला है (सो ग्वलु किरियाई नाम) वह निश्चय से क्रिया रुचि है (१०) ___ (अणभिगहिय कुदिठ्ठी) जिसने मिथ्या दृष्टि नहीं ग्रहण की (संखेव रुइत्ति होइ नायनों) उसे संक्षेप रूचि जानना चाहिए (अविसारओ पवयणे) प्रवचन में अकुशल (अणभिग्गहिओ य सेसेसु) अन्य दर्शनों का भी ज्ञान नहीं (११) _ (जो अस्थिकाय धम्) जो अस्तिकाय धर्म को (सुधधम्म) श्रुतधर्म को (खल) निश्चय (चारित्तधम् च) और चारित्रधर्म को (सहइ) श्रद्धा करता है (जिणाभिहिय) जिनोक्त (सो धम्नरुइ त्ति नायचो) उसे धर्मरूचि जानना चाहिए। (१२)
(परमत्व संधबो वा) परमार्थ का परिचय या आदर करना (सुदिह परमत्थ सेवणा वावि) परमार्थ को सम्यक प्रकार से देखने वालों की सेवा करना (वावन्नकुसणव जगा य) समकित का वमन कर देने मा ३शिवाजा छे (सो खलु किरियारूई नाम) ते निश्चये ४२ या ३थि छ (१०)
(अणभिगहिय कुदिट्री) २२ मिथ्या ष्टि नथी अY ४१ (सखेवरुइत्ति होइ नायव्वो) तेन स २५ ३ aaja को (अविसारओ पवयणे) अवयनमा मधुशा गविशा२६ (अणभिग्गहीओ य सेसेसु) अन्य दशनानु ५ ज्ञान नहीं (११) __(जो अस्थिकायधम्म) रे मस्तिथ यमन (सुयधम्म) श्रुतमन (खल) न४ि४ (चोरित्तधम्मं च) मने या२त्र (सदहइ) श्री राजे छ (जिणाभिहिय) foransa (सो धम्मरुइत्ति नायब्यो) तेने यम ३थि त नये (१२)
(परमत्थ संथवो वा) ५२भाय ना पश्यिय म॥२ मा४२ ४२३१. (सुदिट्ठ परमत्य सेवणावा वि) ५२मान सभ्य५ अरे नारायानी सेवा ४२वी (वा वन्न कुदसणा वज्जणाय) समतिनु वमन ४२ना२तया मिथ्याशनायाथा २ २ (सम्मत्त सदहणा) सभ्यत्वमा-Na! राणे छ (१३)