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प्रमेययोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२२ पिशाचदेवानां स्थानानि अनीकानाम् सप्तानाम् अनीकाधिपतीनाम्, पोडशानाम्, आत्मरक्षयदेवसाहस्रीणाम्, अन्येषां च बहुनां दाक्षिणात्यानाम् वानव्यन्तराणां देवानाञ्च देवीनाश्च आधिपत्यं, यावद् विहरति, औत्तराहाणां पृच्छा ? गौतम यथैव दाक्षिणात्यानां वक्तव्यता तथैव औत्तराहाणामपि, नवरं मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरेण महाकालोऽत्र पिशाचेन्द्रः पिशाचराजः परिवसति, यावद् विहरति, एवं यथा पिशाचानां तथा सीण) चार अग्रमहिषियों का (सपरिवाराणं) परिवार सहित का (तिण्हं परिसाणं) तील परिषदों का (सत्तहं अणियाणं) सात अलीकों का (सत्तण्हं अणियाहिबईणं) सात अनीकाधिपतियों का (सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं) सोलह हजार आत्मरक्षक देवों का (अन्नेसिं च बहणं) अन्य भी बहुत-से (दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य) दक्षिण दिशा के वान-व्यन्तर देवों और देवियों का (आहेवचं जाव विहरइ) अधिपतित्व करता हुआ यावत् विचरता है। ___ (उत्तरिल्लाणं पुच्छा) उत्तर दिशा के पिशाच देवों के विपय में प्रश्न (गोयमा) हे गौतम ! (जहेव दाहिणिल्लाणं वत्तव्यता तहेव उत्तरिल्लाणं पि) जैसी दक्षिण दिशा वालों की वक्तव्यता वैसी ही उत्तर दिशा वालों की भी वक्तव्यता (णवरं) विशेष (मंदरस्स पचयस्स उत्तरेणं) मंदर पर्वत के उत्तर में (महाकाले) महाकाल नामक (एत्थ) यहां (पिसाथिदे पिसायराया) पिशाचों का इन्द्र, पिशाचों का राजा (परिवसइ) निवास करता है (जाव विहरइ) यान्तु विचरता है (एवं) इस प्रकार (जहा) जैसी (पिसायाणं) पिशाचों का (तहा) परिसाणं) ऋण परिषहोना (सत्तण्हं अणियाणं) सात मनाहाना (सत्तण्हं अणियाहिवईणं) सात मनीधिपतियाना (सोलसण्हं आयरक्खयदेवसाहस्सीणं) सोल
१२ यात्म २६४ हेवाना (अन्नेसिं च वहूणं) मी घg या (दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं देवाण य देवीयाय) क्षिा हिशान वा-व्यत२ । मन हेवियोना (आहेवच्चं जाव विहरइ) मधिपतित्व ४२ता ५४ पियरे छ
(उत्तरिल्लाणं पुच्छा) उत्त२ शान पिाय हेवान विषयमा प्रश्न (गोयमा ) गौतम ? (जहेव दोहिणिल्लाणं वत्तव्वया तहेव उत्तरिल्लाणं पि) २वी દક્ષિણ દિશાવાળાઓની વક્તવ્યતા કહી છે તેવીજ ઉત્તર દિશાવાળાઓની પણ पतव्यता छ (नवरं) विशेष (मंदरस्स पव्ययस्स उत्तरेणं) भ२ ५तनी उत्तरमा (महाकाले) मह स नामना (एत्य) मी (पिसायिंदे पिसायराया) पिशाय। नान्त. पियाना २ (परिवसइ) (नवास ४२ छे (जाव विहरइ) यावत् वियरे छ (एवं) मा प्रारे (जहा) भ (पिसायाण) पिशायाना (तहा) तम